Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 25 of 49

background image
: रर : आत्मधर्म : फागण : र४९९
परमात्मानुं स्वरूप
शुद्धात्माना ध्यानरूप शुद्धोपयोगवडे घातीकर्मोने दूर करीने, केवळज्ञानरूप
परमपद जेमणे प्रगट कर्युं छे तेओ परमात्मा छे, तेओ लोकालोकने प्रत्यक्ष जाणनारा
छे. ते परमात्माना बे प्रकार छे: अरिहंत परमात्मा, अने सिद्ध परमात्मा. अरिहंत
परमात्मा शरीरसहित होवाथी तेमने स–कल परमात्मा कहेवाय छे; एवा लाखो
अरिहंत भगवंतो विदेहक्षेत्रमां अत्यारे विचरी रह्या छे, अने सदाय थया करे छे.
सिद्धपरमात्माने शरीर होतुं नथी तेथी तेमने नि–कल परमात्मा कहेवाय छे, तेओ
ज्ञानशरीरी छे, तेओ आठेकर्मथी रहित छे. तेरमा अने चौदमा गुणस्थाने बिराजमान
जीवो अरिहंत परमात्मा छे; अने गुणस्थानथी पार, देहातीत सिद्ध भगवंतो छे. सिद्ध–
परमात्मा एटले चार गतिथी मुक्त जीव, तेओ अनंता छे. अरिहंत अने
सिद्धपरमात्मा आत्माना अनंत सुखने अनुभवे छे.
–आम त्रण प्रकारमांथी बहिरात्मपणाने हेयरूप जाणीने छोडवुं; अंतरमां देहथी
भिन्न शुद्ध परमस्वरूपने ओळखीने अंतरात्मा थवुं अने निरंतर तेना ज ध्यानवडे
परमात्मा थईने नित्य अनंत आनंदनो अनुभव करवो. दरेक जीवमां आवा परमात्मा
थवानी ताकात छे.
कोई कहे के अमे गामडामां रहीए, धंधा–वेपार–मजुरीमां जीवन वीतावीए, ने
आ परमात्मा थवानी आवडी मोटी वात आप समजावो छो! ते अमने केम समजाय?
तो कहे छे के–हे भाई! तुं गामडामां नथी रह्यो, तुं तो तारा अनंतगुणना मोटा
वैभवमां रह्यो छो. दुःखथी छूटवा माटे आत्मानी दरकार करीने जे समजवा मांगे ते
दरेकने समजाय तेवी आ वात छे. तारा स्वरूपमां जे छे ते ज तने बतावीए छीए,
एनाथी विशेष कांई नथी कहेता. बापु! जीवनमां आ वात लक्षमां लेवा जेवी छे, बाकी
तो बधुं थोथां छे, तेमां आत्मानुं कांई हित नथी. पैसा कमावा खातर मजुरीमां जीवन
वीतावे छे पण ए करोडो रूपियामां के बंगला–मोटरमां क्यांय सुखनो छांटोय नथी,
अरे! स्वर्गमांय सुख नथी त्यां मनुष्यलोकना वैभवनी शी वात? सुख तो आत्माना
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां ज छे, बाकी बहारनां कोई पण पदार्थना लक्षे तो
आकुळताने दुःख ज छे.