छे. ते परमात्माना बे प्रकार छे: अरिहंत परमात्मा, अने सिद्ध परमात्मा. अरिहंत
परमात्मा शरीरसहित होवाथी तेमने स–कल परमात्मा कहेवाय छे; एवा लाखो
अरिहंत भगवंतो विदेहक्षेत्रमां अत्यारे विचरी रह्या छे, अने सदाय थया करे छे.
सिद्धपरमात्माने शरीर होतुं नथी तेथी तेमने नि–कल परमात्मा कहेवाय छे, तेओ
ज्ञानशरीरी छे, तेओ आठेकर्मथी रहित छे. तेरमा अने चौदमा गुणस्थाने बिराजमान
जीवो अरिहंत परमात्मा छे; अने गुणस्थानथी पार, देहातीत सिद्ध भगवंतो छे. सिद्ध–
परमात्मा एटले चार गतिथी मुक्त जीव, तेओ अनंता छे. अरिहंत अने
सिद्धपरमात्मा आत्माना अनंत सुखने अनुभवे छे.
परमात्मा थईने नित्य अनंत आनंदनो अनुभव करवो. दरेक जीवमां आवा परमात्मा
थवानी ताकात छे.
दरेकने समजाय तेवी आ वात छे. तारा स्वरूपमां जे छे ते ज तने बतावीए छीए,
एनाथी विशेष कांई नथी कहेता. बापु! जीवनमां आ वात लक्षमां लेवा जेवी छे, बाकी
तो बधुं थोथां छे, तेमां आत्मानुं कांई हित नथी. पैसा कमावा खातर मजुरीमां जीवन
वीतावे छे पण ए करोडो रूपियामां के बंगला–मोटरमां क्यांय सुखनो छांटोय नथी,
अरे! स्वर्गमांय सुख नथी त्यां मनुष्यलोकना वैभवनी शी वात? सुख तो आत्माना
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां ज छे, बाकी बहारनां कोई पण पदार्थना लक्षे तो
आकुळताने दुःख ज छे.