Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 43 of 49

background image
: ४० : आत्मधर्म : फागण : र४९९
उत्तर :– जेनी आराधना करवानी छे एवा पोताना शुद्धात्माने ज आराध्यदेव तरीके
स्थापीने, तेनी श्रद्धा–ज्ञान–अनुभूति करवी, एनाथी विरुद्ध रागादि बीजा कोई
भावोने अनुभूतिमां प्रवेशवा न देवा–एनुं नाम आराधना छे. आ
आराधनामां परभावोथी भिन्न पोताना साचा स्वरूपने ओळखीने जीवे
तेनुं ज सेवन करवानुं छे. आत्मानी ओळखाणरूप सम्यग्दर्शन ते प्रथम
आराधना छे.
प्रश्न :– समुद्घात वखते केवळीप्रभुना आत्मप्रदेशो आपणा आत्माने स्पर्शी जाय छे
छतां आपणने खबर केम पडती नथी?
उत्तर :– समुद्घात वखते केवळी प्रभुना आत्मप्रदेशो आखा लोकमां फेलाय छे एटले
अहीं आपणी पासे पण आवे छे–ए खरूं, पण ते आत्मप्रदेशो अतीन्द्रिय छे,
ईंद्रियज्ञाननो ते विषय नथी. एनुं स्वरूप विचारतां अतीन्द्रिय आत्मा लक्षमां
आवी जाय छे. एकक्षेत्रनी अपेक्षाए भले स्पर्श कहेवाय, बाकी तो आत्मप्रदेशो
अस्पर्शी छे. वळी ते एकप्रदेशीपणानो काळ पण मात्र एक–बे के त्रण समयो
ज छे, ने तेथी छद्मस्थज्ञाननो विषय ते थई शके नहि. असंख्य समयथी ओछा
काळनी वस्तुने छद्मस्थनो उपयोग पकडी शकतो नथी.
प्रश्न :– मांसाहारी जैन होई शके?
उत्तर :– ना; कोईपण जैन कदी मांसाहारी होई शके नहि, मांसाहार होय त्यां जैनपणुं
होई शके नहि. अरे, सिंह जेवा मांसभक्षी प्राणी पण ज्यां धर्म समजे छे के
तरत मांसाहार छोडीने समाधिमरण करे छे अथवा तो निर्दोष खोराक खाईने
जीवे छे. मांसाहारनुं जेमां प्रतिपादन होय ते शास्त्र नथी, ते तो कुशास्त्र छे.
याद रहे के ईंडा, मध वगेरे पण मांसनी जेम ज सर्वथा अभक्ष छे.
दवारूपे पण तेनुं भक्षण आर्य माणसने होय नहीं.
पोताना शरीरनुं मांस कापीने कोई राजाए दान कर्युं–एवी कथा आवे
छे, –पण ते योग्य नथी; ज्ञानी एवुं करे नहीं. आ संबंधमां शांतिनाथ
भगवानना पूर्वभवनो एक प्रसंग आवे छे, ते कोईवार कहेशुं.