Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ४र : आत्मधर्म : फागण : र४९९
अत्यारे तो धर्मस्थल पहोंची पण गई हशे.) आ उपरांत रस्तानी मजबुतीनी
चकासणी माटे प्रथम एक ज पथ्थरना अखंड मानस्तंभ माटेनो प४ फूट ऊंचो पथ्थर
(त्रण हजार मण वजननो) कारकलथी धर्मस्थल लई जवानो हतो.
ई. स. १९७० मां राष्ट्रपति श्री वी. वी. गीरी धर्मस्थलनी मुलाकाते गयेला
त्यारे आ दिव्यमूर्ति स्थापवा माटेना ‘बाहुबली–विहार’ नो पायो तेमना हस्ते नंखायो
हतो. हवे थोडा समयमां भव्य प्रतिमाजीनी स्थापना थशे;– राष्ट्रना ईतिहासमां सेंकडो
वर्षे बननारी आ एक महान घटना हशे. जगतने वीतरागतानो संदेश आपीने
चैतन्यसाधनानी शूरवीरता जगाडनार ए दिव्य मुद्रावंत वीर बाहुबलीनाथने आपणे
नमस्कार करीए छीए.
दिगंबरोनो धर्म
दिगंबर जैननो पहेलो धर्म ए छे के वीतरागी अरिहंत देव–गुरुने
ओळखीने तेमना जेवा पोताना शुद्ध ‘दिगंबरआत्माने’ एटले के परभावोनी
लागणीथी रहित एवा शुद्ध ज्ञानमय आत्माने ओळखवो. आवा आत्माने
ओळखतां मिथ्यात्वरूपी महान परिग्रह छूटीने अंशे निर्ग्रंथपणुं थाय छे, अने
सम्यक्त्वभावरूप दिगंबरधर्मनी शरूआत थाय छे; त्यारे ज संपूर्ण निर्ग्रंथ
एवा वीतरागी देव–गुरुनी ओळखाण थाय छे. आवो सम्यक्त्वभाव प्रगट
करीने मिथ्यात्व–ग्रंथिने छोडवी ते दिगंबरोनो पहेलो धर्म छे.
ज्यां मिथ्यात्वग्रंथी छूटीने सम्यक्त्वधर्म थयो त्यां सर्वथा निष्परिग्रही,
चिदानंदतत्त्वनी अनुभूति थई–श्रद्धा थई–ज्ञान थयुं; ते ज तत्त्वमां एकाग्र
थईने शुद्धोपयोगी चारित्रना बळे वस्त्रादि समस्त परिग्रहोनुं ममत्व छूटी
जाय ने दिगंबर दशा धारण करीने मुनिदशा प्रगटे ते साक्षात् दिगंबर धर्म छे.
पहेलांं सम्यग्दर्शन पछी दिगंबर जैनोनुं आ बीजुं कर्तव्य छे.
आ रीते आत्मभान करीने सम्यक्श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक वीतरागी
चारित्रदशानुं आराधन ते दरेक दिगंबर जैननो धर्म छे, ते मोक्षनो मार्ग छे.
जे आवुं आराधन करे ते ज साचो दिगंबर जैन छे.