: फागण : र४९९ आत्मधर्म : ४३ :
निर्ग्रंथनो पंथ... भवअंतनो उपाय छे
साचुं नग्नपणुं क्यारे थाय?
शरीर अने ईंद्रियोथी आत्मानुं जुदापणुं जेना
अनुभवमां आव्युं छे, एटले श्रद्धा–ज्ञानमां तो
अतीन्द्रिभाव जेने थई गयो छे, अने ते उपरांत
अतीन्द्रिय चैतन्यमां लीनता वडे स्पर्शादि
ईंद्रयविषयोमांथी जेनी परिणति हटी गई छे एटले
अंतरमां अस्पर्शीपणुं थयुं छे त्यां बहारमां शरीरनुं
नग्नपणुं सहेजे होय छे. आवी दशा ते वीतरागमार्गमां जैनमुनिओनी दशा छे... तेओ
मोक्षने साधे छे कुंदकुंदस्वामी समयसारनी ३१मी गाथामां कहे छे के अतीन्द्रिय
ज्ञानस्वभावी आत्मानो ज्यारे अनुभव थयो त्यारे ईंद्रियोथी जुदापणारूप भेदज्ञान
थयुं, ते जितेन्द्रिय थयो, ते जिननो भक्त थयो, ते सम्यग्द्रष्टि–मोक्षमार्गी थयो.
आवा अतीन्द्रियआत्माने अनुभवीने तेमां जेओ ठर्या–एवा मुनिओने शरीर
पण आवरण वगरनुं खूल्लुं थई जाय छे; तेमने शरीरनो कोई भाग ढांकवानी वृत्ति
होती नथी, केमके देहातीत चैतन्यभाव प्रगटी गयो छे, देहने ढांकवानी वृत्ति रहे ने मोक्ष
पण सधाय–एम बनी शकतुं नथी. वीतरागनो मार्ग तो निर्ग्रंथमार्ग छे, आत्मामां
मोहनी गांठ नहि, देहमां वस्त्रना परिग्रहरूप गांठ नहीं, एवो निर्ग्रंथ मोक्षमार्ग छे.
अहो, आवा निर्ग्रंथ मोक्षमार्गने ओळखीने आराधतां भवना अंत आवे छे.
‘निर्ग्रंथनो पंथ भवअंतनो उपाय छे.’
गुरुदेवे अध्यात्ममार्ग खुल्लो करीने जैनजगतनुं हित कर्युं छे–
“हुं ४प वर्षथी पू. गुरुदेवश्रीना परिचयमां छुं. तेमनी घणी ज कृपा छे. पू.
गुरुदेवे आगमशास्त्रोना अभ्यास अने मंथन पछी जैनदर्शनने नवो वळांक आप्यो छे;
अने सारा देशना जैन तथा जैनेतर तत्त्वचिंतकोनी आंखोने नवी द्रष्टि आपी
अध्यात्ममार्ग खुल्लो करी जगत उपर महान उपकार कर्यो छे. आत्मधर्म मासिकमां
घणी रसप्रद बाबतो आवे छे, वांचतां प्रमोद आवे छे. ‘आत्मधर्म’ मासिके
अध्यात्मरसपूर्ण वानगीओ पीरसी समाजनुं अने जैनजगतनुं घणुं हित कर्युं छे. (ली:
आर. पी. कोठारी; जामनगर म्युनी. ना रीटायर्ड चीफ ओफिसर.)