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छे, तेनी भावना करवी ते परमागमना अभ्यासनुं फळ छे. अहो, तीर्थंकरपरमात्माना
ज्ञानमां आवेलो आनंदमय आत्मा, तेने धर्मी भावे छे; रागने ते भावतो नथी.
सहजज्ञानस्वरूप आत्मा तो आनंदमां फेलायेलो छे; जड शरीरमां के रागमां तेनो
फेलाव नथी.
अहा, मारो आत्मा जगतमां सौथी सुंदर कोई अद्भुत ज्ञानआनंदथी भरेलो
चैतन्यचमत्कारी महा पदार्थ छे–एम परममहिमाथी अंतरमां आत्माने लक्षमां लईने
वारंवार तेने भावतां अतीन्द्रिय आनंदसहित भगवानना भेटा थाय छे. आनंद जेमां
भर्यो छे तेनी भावनाथी आनंदनुं वेदन थाय छे. माटे हे जीव! आनंदथी भरेला
आतमराम साथे तुं रमत मांड, ने परभाव साथेनी रमत छोड. –आवी भावनाना
फळमां केवळज्ञान प्रगटे छे ते जगतने मंगळरूप छे. जुओ तो खरा! कुदरत पण केवी
साथे ने साथे छे! –के आजना परमागमना मंगळमां आ जगतने मंगळरूप
केवळज्ञाननी वात आवी. –
मोह–राग–द्वेषने नष्ट करीने अपूर्व केवळज्ञानज्योतिनो उदय करे छे. आनंद तो
चैतन्यमय आत्मामां छे, –तेमां राग–द्वेष–मोहनो अंश पण नथी, तेथी तेमां एकाग्र
थतां राग–द्वेष–मोहनी सत्तानो नाश (सत्यानाश) थई जाय छे, ने वीतरागी
आनंदमय केवळज्ञानज्योत झळकी ऊठे छे; ते जगतमां श्रेष्ठ मंगळरूप छे.
माने छे, पण ते तो बहारनी उपाधि छे; आ अंतरमां स्वभावनी