Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : र४९९ आत्मधर्म : प :
महा आनंदनो मार्ग
(नियमसार गाथा ४ ना प्रवचनमांथी: माह सुद १३)
आत्माना महा आनंदनो लाभ ते मोक्ष छे.
आत्मा पोते अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप तो छे ज, –तेनी अंतर्मुख थईने पर्यायमां
ते आनंदरूप परिणमे एटले आनंदनुं साक्षात् वेदन थाय ते महा आनंदनो
लाभ छे, ते साक्षात् मोक्ष छे.
• आवा महा आनंदनी साक्षात् प्राप्तिनो उपाय ते शुद्धरत्नत्रयपरिणति छे; ते
रत्नत्रय पण अतीन्द्रिय आनंदरूप छे.
• वस्तुमां जे शक्ति छे ते परिणतिमां प्रगटे त्यारे ते कायरूप थाय छे. आनंद
आत्मानी शक्तिमां छे पण पर्यायमां कार्यरूपे प्रगटे त्यारे ते अनुभवमां आवे
छे. कारणरूप शक्ति तो बधा जीवोमां त्रिकाळ छे, पर्याय ज्यारे अंतर्मुख थईने
तेने प्रगट वेदनमां ल्ये त्यारे आनंदनो अनुभव थाय छे ते त्यारे महा
आनंदरूप मोक्षनो उपाय प्रगटे छे. –ते मुमुक्षुनुं कार्य छे.
• अहा, मोक्ष अने तेनो मार्ग–बंने अतीन्द्रिय आनंदरूप छे. आनंदनुं वेदन
करतां–करतां मोक्ष सधाय छे. तेमां कष्ट नथी, दुःख नथी.
• मोक्षने पामनारा भगवंतोए भव्य जीवोने एम कह्युं छे के शुद्ध रत्नत्रयरूप
थयेलो आत्मा ते ज पोते अभेदपणे मोक्षमार्ग छे. तेनाथी जुदा कोई
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र नथी. जेणे अंतर्मुख थईने आवा सुंदर मार्गने प्राप्त
कर्यो ते जीव अल्पकाळे मोक्ष पामे छे, ने फरीने माताना उदरमां आवतो नथी.
• अहा, सम्यग्दर्शनमां चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदनो एक अंश अनुभवमां
आव्यो, ते आनंद पासे पण त्रण लोकना ईन्द्रियवैभवो सर्वथा निःसार लागे
छे. चैतन्यसुखना कणिया पासे ईन्द्रपदनी विभूतिनी पण कांई किंमत नथी. तो