Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 49

background image
: : आत्मधर्म : फागण : र४९९
थयुं तेनी शी वात! अहा, आवी शांतिनुं अमृत चाख्या पछी झेर जेवा रागमां के
रागना विषयोमां धर्मीने प्रेम केम रहे? एना स्वादने धर्मी पोतानो केम माने?
ज्ञान साथे धर्मीजीवने अनंतगुणोनुं निर्मळ सामर्थ्य प्रगट्युं छे. बापु! आवुं
परम शांत चैतन्य तत्त्व तने जैनमार्ग सिवाय बीजुं कोण बतावे? बीजे तो आत्माना
नामे रागादिनी पुष्टि करनारा लूटाराओ छे, –एमां क्यांय आवुं चैतन्यतत्त्व तने नहीं
मळे. अहो! ज्ञान ते कोने कहेवाय? ज्यां ज्ञान थयुं त्यां रागथी लूखी एवी अपूर्व
शांति प्रगटी के गमे तेवी प्रतिकूळताना घेर वच्चे पण ज्ञान पोतानी शांतिथी छूटतुं
नथी; ते ज्ञानना बळे धर्मीजीव कर्मोने निर्जरावी ज नांखे छे.
अहो, कुंदकुंद भगवाने आ समयसारादि परमागमो रचीने भरतक्षेत्रना जीवो