Atmadharma magazine - Ank 354
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : ११ :
धर्मीनी ज्ञानधारा अच्छिन्न छे.
ते ज्ञानधारामां जे शांति छे ते जगतमां बीजे क््यांय नथी
ज्ञानधारामां परम शांतरसनुं वेदन छे. वीतरागरसना अखंड वहेण एमां
वहे छे. सिंह–वाघ–सर्प के नारकीमां पण जेओ अंतरमां आत्माने शुद्धपणे परम
पुरुषार्थथी अनुभवे छे तेओने अंदरमां आनंदरसनी धारा वहे छे. बहारमां मोटो
नाग होय, ने अंदर एनो आत्मा आनंदमय चैतन्यना अतीन्द्रिय अमृतरसने
अनुभवतो होय. आ तो ‘जे मारे तेनी तलवार’ जेवुं छे, एटले आनंद तो बधा
आत्माना स्वभावमां भर्यो छे पण जे पुरुषार्थ करीने (भेदज्ञानरूपी तलवारना
प्रहार वडे ज्ञान अने रागने जुदा करीने) अंदरमां ऊतरे एने अंदर आत्माना
महा आनंदनो अनुभव थाय छे.–भले सिंह होय के नाग होय, बाळक होय के मोटो
राजा होय,–जे जागे ते आत्माना अनुभवनुं काम करी ल्ये छे ने महान आनंदनी
धारा अनुभवे छे. सम्यग्दर्शन थयुं त्यारथी मोक्ष थतां सुधी एवी अछिन्न धाराए
आत्माने अनुभवमां लेवो के वच्चे कदी तेमां भंग न पडे, सम्यग्ज्ञानी धारा न तूटे
निर्विकल्पदशा हो के सविकल्पदशा हो,–धर्मीनी ज्ञानधारा तूटती नथी; अच्छिन्न
ज्ञानधाराथी विकल्पोने तोडीने धर्मीजीव केवळज्ञानने साधे छे. सातमा गुणस्थान
पछी तो शुद्धोपयोगनी अच्छिन्न धारावडे अंतर्मुहूर्त मां जीव केवळज्ञान पामे छे.
जुओ तो खरा, बाहुबली भगवान अंदर आत्मानी ध्यानदशामां एकवर्ष सुधी
केवा ऊभा छे! आत्मानी ज्ञानधारानुं केवुं पराक्रम एमनी मुद्रामां देखाय छे! अद्भुत
वीतरागता झळके छे. एक वर्ष सुधी अडोलपणे ऊभाऊभा शुद्ध चैतन्यने ध्यावी–
ध्यावीने अच्छिन्नधाराए अंते केवळज्ञान लीधुं. आत्मानी साधनानो ए अजोड नमूनो
छे, आश्चर्यकारी छे. श्रवणबेलगोलमां ए बाहुबलीभगवाननी भव्यमूर्ति देखीने पं.
जवाहरलाल नहेरु जेवा पण आश्चर्य पामी गया हता. (श्रीमती ईन्दिराबेन गांधी पण
ते वखते तेमनी साथे हता.) अरे, चैतन्यनी साधनामां केवी अद्भुत शांति छे! तेनी
जगतने खबर नथी.
बापु! तारुं चैतन्यतत्त्व कांई खाली नथी; अनंती शांतिना भावोथी ते तन्मय
भरेलुं छे. अहा, एना परम महिमानुं शुं कहेवुं? आनंदमय चैतन्यनो महिमा