: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : २५ :
अरे, हुं ज्ञानस्वरूप आत्मा केवो छुं – एनो जेने अनुभव नथी, राग वगरनुं
स्वरूप केवुं छे तेनी जेने खबर नथी, राग अनात्मा होवा छतां तेने आत्मभावे जे
अनुभवे छे ते अज्ञानी छे, ज्ञानस्वरूपे आत्मानी सत्ता छे – तेनो तेने निर्णय नथी.
रागनुं अस्तित्व छे, ते रागपणे छे पण ज्ञानमां रागनुं अस्तित्व नथी.–आम
धर्मी जीव पोताने रागना अत्यंत अभावरूप एवी चैतन्यसत्तापणे अनुभवे छे; रागने
चैतन्यथी भिन्न सत्तापणे जाणे छे.–आवुं भेदज्ञान जेने न होय ते जीव सम्यग्द्रष्टि नथी.
स्वरूपे सत्ता, ने पररूपे असत्ता–एवुं एक वस्तुनुं स्वरूप छे. पररूपने जो
स्वरूपमां भेळवे तो ते जीवे वस्तुना स्वरूपने जाण्युं नथी.
आत्माने स्वरूपे सत्ता छे. ‘स्वरूपे सत्ता’ एटले शुं?
ज्ञान–आनंदरूप जे निजस्वभाव ते स्वरूप छे, ते ज्ञानादि भावो साथे आत्माने
तन्मयता छे, तेने आत्मा पोतापणे अनुभवे छे; एटले ज्ञानादिस्वरूपे आत्माने
सत्पणुं छे.
अने आत्माने पररूपे असत्ता छे. पर रूप एटले शुं? के ज्ञानानंदस्वरूप
आत्माथी भिन्न जे कोई शरीरादिक के रागादि भावो छे ते बधाय अनात्मा छे, ते
पररूप छे, तेनाथी आत्मानी सत्ता भिन्न छे. जो ते शरीरादिथी तथा रागादिथी भिन्नता
न माने, ने तेने आत्मामां भेळवे, तो ते जीवे ‘पररूपथी असत्’ एवा आत्माने
जाण्यो नथी; एटले परथी जुदा स्वरूपे आत्मानी सत्ता केवी छे ते पण तेणे जाण्युं नथी,
तेथी ते मिथ्याद्रष्टि छे; तेने आत्मा ने अनात्मानुं भेदज्ञान नथी.
आत्मा अने अनात्मानुं यथार्थ भेदज्ञान करीने जेणे सम्यग्दर्शन कर्युं तेणे
आत्मामां मोक्षना मांडवा नांख्या.
अहा, मोक्षमार्गमां पावरधा एवा दिगंबर संतोए आ मोक्षमार्ग बताव्यो छे.
रागनो एक कणियो पण आत्माना ज्ञानभावमां नथी; ज्ञानमयभाव रागथी सर्वथा
जुदो छे.
आत्माना स्वभावनो अनुभव करतां तेमां ज्ञाननी अस्ति अने रागनी नास्ति,
एम अस्ति–नास्तिनुं ज्ञान एक साथे ज छे. ‘ज्ञाननी अस्ति’ जाणी अने ते वखते
‘ज्ञानमां रागनी नास्ति’ जाणवानुं बाकी रही गयुं. –एम नथी. जेणे रागनी नास्तिने
जाणी नथी तेणे ज्ञाननी अस्तिने पण नथी जाणी.