Atmadharma magazine - Ank 354
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : ३५ :
प्रधान मारा निजवैभवथी हुं एकत्व–विभक्त सुंदर आत्मा देखाडुं छुं, तेने हे
श्रोताजनो! तमे पण तमारा स्वानुभप्रत्यक्षप्रमाण वडे प्रमाण करजो. मात्र हा पाडीने
अटकशो नहि पण पोताना आत्मामां स्वानुभव करजो. सम्यग्दर्शन थतां ज आवुं
स्वानुभव–प्रत्यक्षप्रमाण पोताने थई जाय छे. त्यां आत्माना अनुभवमां परम
निःशंकता छे, परम तृप्ति छे, परम संतोष छे; आत्मा पोते परम सुखरूपे वेदाय छे.
अहो जीवो! शांतिनो समुद्र अंदर तमारामां छे, तेमां ऊंडा ऊतरोने!
आत्मा स्वयमेव शांतिपणे तमने एवो अनुभवाशे के तमे तृप्त–तृप्त थई जशो.
साक्षात् परमेश्वरनो पोतामां भेटो थई गयो–पछी अतृप्ति केवी? पछी बीजाने
पूछवानुं शुं?
सम्यग्दर्शन थतां धर्मी जीव आत्माने एवो अनुभवे छे के
अचिंत्यशक्तिवाळो देव स्वयं हुं पोते छुं. चैतन्यचिंतामणि हुं पोते छुं; मारा ज
स्वरूपना चिंतनथी मने महान आनंद–सुख–शांति–सम्यक्त्व वगेरे अमूल्य निधान
प्रगट थया छे, मारा सर्व अर्थनी सिद्धि मारा स्वरूपमां ज छे, तो हवे बीजा कोई
परिग्रहथी मारे शुं प्रयोजन छे? अहा, चैतन्यतत्त्व अगाध–अचिंत्य शांतिना
भावोथी भरेलुं पोतामां अनुभवायुं त्यां हवे बहारथी बीजुं शुं लेवानुं बाकी
रह्युं? अहा, चैतन्यना चिंतनमां धर्मीने जे आनंद थाय छे तेनी शी वात! (–
रसस्वादत सुख ऊपजे, अनुभव याको नाम.) धर्मीने अनुभूति थई त्यां
पंचमरमेष्ठी एना घरमां पधार्या. पंचपरमेष्ठी भगवंतोने जेवो आनंद छे तेवा
आनंदना अंकुरा सम्यग्दर्शन थतां ज धर्मीने प्रगट्या छे...अनादिना भडभडता
संसारदावानळनां दुःखोथी छूटीने चैतन्यनी कोई परम शांतिना वेदनथी ते आत्मा
ठरी गयो, तृप्त थयो; एना अनादिना थाक ऊतरी गया, अने मोक्षसुखनो स्वाद
लेवानी शरूआत थई गई. अहा, आ चैतन्यसुखनी बीजा बाह्य द्रष्टि जीवोने
खबर पडे तेम नथी. ए तो जेणे पोते एवुं सुख अनुभव्युं होय तेने ज तेनी
खबर पडे, अने ते ज अनुमान वगेरेथी बीजाना अनुभवने ओळखी शके.
पोताना स्व–संवेदन वगर एकला अनुमानथी के एकला बाह्यचिह्नथी कोई ते
अतीन्द्रिय शातिने ओळखी शके नहीं. धर्मीना अंतरनी शांतिनुं वेदन परम गंभीर
छे, विकल्प तेमां पहोंची शके नहीं. आवुं पोतानुं अचिंत्यस्वरूप जेणे जाण्युं–वेद्युं–
अनुभव्युं ते जीव हवे विकल्पना कोई अंशने पोताना ज्ञानवेदनमां भेळवे नहीं;
अनंत शांतिना वेदनथी भरेलुं ज्ञान, तेमां विकल्प समाई शके नहीं. विकल्पमां ए