: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक वीर सं. २४९९
लवाजम चैत्र
चार रूपिया एप्रिल १९७३
* वर्ष: ३० अंक ६ *
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भगवान महावीर
प्रभो! आपनो मार्ग सुंदर छे, आपनो मार्ग जीवंत छे.
अहो वहाला वीरनाथ! आपनो मार्ग ए वीर पुरुषोनो मार्ग
छे...आपनुं शासन ए अमारा हितने माटे छे. आपनो उपदेश ए
वीतरागतानो ज उपदेश छे....जगतना सर्वे तत्त्वोने साक्षात् जाणीने
तेमां सर्वोत्कृष्ट चैतन्यतत्त्वनो परम गंभीर महिमा आपे भव्यजीवोना
हृदयमां प्रसिद्ध कर्यो छे. प्रभो! आपनो मार्ग जगतमां सौथी सुंदर छे;
आपे बतावेलुं आनंदमय चैतन्यतत्त्व जगतमां सौथी सुंदर छे.
वीतरागता वडे आप शोभी रह्या छो, ने आपनी वीतरागताने
ओळखीने ते मार्गे चाली रहेला साधकजीवो पण आ जगतमां शोभी
रह्या छे. तेमना द्वारा आपनो मार्ग जीवंत वर्ती रह्यो छे.
प्रभो, आपे प्रकाशेलो आवो सुंदरमार्ग वीतरागसंतोनी
परंपराथी अमने मळ्यो. आपनो मार्ग कुन्दकुन्दस्वामीए वहेतो राख्यो,
ने ते ज मार्ग अमारा कहानगुरुना प्रतापे आजे अमने प्राप्त थयो छे.
हजारो लाखो भव्य जीवो आनंदथी आपना मार्गने आदरी रह्या छे...
धन्य मार्ग! आपनो मार्ग ए आनंदनो मार्ग छे....आपनो मार्ग ए
स्वानुभूतिनो मार्ग छे...ए मार्गे साधक जीवो आनंदमय मोक्षपुरीमां
आवी रह्या छे.