Atmadharma magazine - Ank 355
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक वीर सं. २४९
लवाजम वैशाख
चर रूपय MAY 1973
* वर्ष : ३० अंक ७ *
• गुरु महिमा •
श्री गुरु–महिमा अपार छे. श्री गुरुमहिमानो साचो
ख्याल जीवने त्यारे ज आवी शके छे के– गुरुए बतावेलुं महा
आनंदमय शुद्धात्मतत्त्व ज्यारे पोताने लक्षगत थाय. अने एवा
शुद्धात्मतत्त्वनो आनंद वेदनमां आव्या पछी गुरुप्रत्ये–ज्ञानीओ
प्रत्ये जे उपकारबुद्धि उर्मिओ जागे ते अपूर्व होय छे..... केमके
गुरुमहिमाना साचा ज्ञानपूर्वक, तेमना उपकारने पोते झील्यो छे.
गुरु ए कोई व्यक्तिनुं नाम नथी परंतु चैतन्यनी
शुद्धतारूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वगेरे वीतरागीगुणो जेमने
प्रगट्या छे ते बधा जीवो गुरु छे. एवा गुणथी गुरुने जे
ओळखे तेने ज गुरुनी साची सेवा अने साची भक्ति होय; ने
एवी साची गुरुसेवाना फळमां सम्यक्त्वादि निजगुणनी प्राप्ति
थाय ज.
अहा, जेने गुरु मळ्‌या तेने निजगुण मळ्‌या; अने जेने
निजगुण मळ्‌या तेणे ज गुरुने ओळख्या. –केवी मजानी संधि छे
गुरु–शिष्यना गुणोनी! श्री गुरुओए बतावेला भेदज्ञानवडे
अंतर्मुख थईने जेणे निजगुणनी अनुभूति करी तेना उपर
पंचपरमेष्ठी वगेरे श्रीगुरुओ प्रसंन्न छे; संसारनी पंक्तिमांथी
बहार नीकळीने ते जीव पंचपरमेष्ठीनी नातमां बेठो छे. अहो,
आ श्रीगुरुनो उपकार छे के आनंदमय आत्मतत्त्वमां लई जईने
जीवने दोषथी छोडावी, गुणरूप ने आनंदरूप बनावी दे छे.