Atmadharma magazine - Ank 355
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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दीवडा झगमग झगमग थाय. श्रद्धा – ज्ञानां तेज रेलाय
आ दीवडाना चैतन्य – ते जे चेतनप्रभु देखाय. दीवडो झगमग.
मंगलजयंति चोराशीमी
कहानगुरु – उजवाय
परमागमनां मंगलकार्यो
आजे पूरा थाय.
अहो, अद्भुत भावो केवा
चेतनमां झळकाय
ज्ञान श्रद्धानां दीवडा प्रगटे
आत्मानंद पमाय...
परमागमना दीवडा शोभे
सुवर्ण – तीरथधाम,
भक्तजनो सौ आवो आवो
ल्हावो ल्यो तमाम.
सुंदर अवसर आव्यो रूडो
आत्मलाभ लेवाय,
चक्कर चूरी चोराशीनां
सिद्धपद शीघ्र पमाय.
परमागमना अभ्यास द्वारा भावश्रुतमां केलि
अहा, केवी मजानी चैतन्य शांति छे! संतोना हृदयमां भरेली आवी मधुर
शांतिना समुद्रमांथी नीकळेला परमागम चैतन्यनी शांति पमाडे छे.
आवा परमागमना मंथन द्वारा सर्वज्ञना सर्व कथननो सार काढीने गुरुदेव
पोताना हस्ताक्षरमां ज बतावे छे –
(गुरुदेवना हस्ताक्षर नथी छपाया)
(अहो, गुरुदेव! सर्वज्ञना सर्व कथनना साररूप भावश्रत – परिणमन करावीने
आपे अमने सर्वज्ञना मार्गमां लीधा.... ने चोराशीलाखना चक्करथी छोडाव्या...... ते
आपनो अचिंत्य उपकार छे. – हरि.)