Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४९९ : जेठ आत्मधर्म : १५ :
समवसरणनी वच्चे बेठो होय के सातमी नरकमां होय, सम्यग्द्रष्टि पोताने
ज्ञानस्वरूपे ज अनुभवे छे. हजारो वींछीना झेरी डंखनी वेदना वच्चे पण सम्यग्द्रष्टि
एवा साहसिक छे के पोताना ज्ञानानंद स्वरूपथी जराय डगता नथी, ते वखतेय अंदर
ज्ञान–स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान वडे स्वरूपनी शांतिने वेदे छे. असाताना उदयथी तेनुं
ज्ञान छूटुं ने छूटुं वर्ते छे. जराक राग–द्वेष छे, दुःख छे पण ज्ञानस्वभावनी श्रद्धामां
तेने अडवा देता नथी. तेमज हजारो देवो खमा–खमा करता होय, –सातानी बधी
अनुकूळ सामग्री होय, छतां ते साताना उदयनेय धर्मीजीव ज्ञानमां अडवा देता नथी,
ज्ञानने तेनाथी छूटेछूटुं ज अनुभवे छे. लाखो वींछी करडे, के करोडो देवो सेवा करे तेथी
ज्ञानने शुं? सम्यग्द्रष्टि तो ज्ञानपणे ज पोताने वेदे छे, ज्ञान साथे आनंदनुं–शांतिनुं
वेदन वर्ते छे. –धर्मीनी आवी अद्भुत ज्ञानदशा छे ते निर्जरानुं ज कारण छे.
जेनाथी मोटा मोटा पर्वतना चुरेचूरा थई जाय, एवो वज्रपात पोताना शरीर
उपर थाय तोपण धर्मीजीव पोताना ज्ञानस्वरूपथी चलायमान थतो नथी. विभाव
अने स्वभाव बंनेने भिन्न ज जाणे छे, ने पोते पोताना स्वभावमां निःशंक रहीने
ज्ञानभावपणे ज पोताने अनुभवे छे. राग अने शरीर मारामां छे ज नहि, एटले
तेना फेरफारे मारुं ज्ञान अन्यथा थई जतुं नथी. –आवी श्रद्धाना बळे धर्मीनुं ज्ञान
रागमां एकत्व रूप थतुं नथी, त्यां संयोगनी वात क्यां रही? जगतना
कोई वज्रपातमां एवी ताकात नथी के ज्ञानस्वरूप एवा मारो नाश करी शके. शरीरनो
नाश थाय ते तो तेनो स्वभाव छे, पण कांई तेना नाशे मारो नाश थई जतो नथी.
अहो. हुं तो शुद्ध आनंदकंद छुं.–आवी वेदनासहित प्रतीत धर्मीने सदाय वर्ते छे. तेथी
कुंदकुंदस्वामी कहे छे के–
सम्यक्त्ववंत जीवो निःशंक्ति तेथी छे निर्भय अने,
छे सप्त भय प्रविमुक्त जेथी तेथी ते निःशंक छे.
राग वगरनी पोतानी ज्ञानचेतनाने जेणे आनंदसहित अनुभवी छे एवा
धर्मात्माने कोई कर्मफळ प्रत्ये अभिलाषा नथी, तेमां पोतापणानी बुद्धि नथी; कर्मफळ–
चेतनाथी जुदी एवी ज्ञानचेतनारूपे ज ते पोताने अनुभवे छे. बहारना संयोग सारा
होय तो मारा श्रद्धा–ज्ञान टके एवी बुद्धि धर्मीने नथी. आ प्रतिकूळता तो केटलोक काळ
रहशे! हमणां ते मटीने अनुकूळता आवशे ने मने ठीक पडशे–एवी संयोगबुद्धि धर्मीने
नथी. कोई धर्मीने ख्याल आवे के मने तीर्थंकरप्रकृति बंधाशे ने हुं तीर्थंकर थईश,–पण
त्यां धर्मीने ते तीर्थंकरप्रकृतिना कर्मफळनी भावना नथी,