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समजाव्युं छे. ज्ञान अने रागनुं सर्व प्रकारे पृथक्करण
करीने ज्ञानीनी अद्भुत दशा ओळखावी छे.
अज्ञानीने आत्मानो तो अनुभव नथी एटले ते व्रतादि जे कांई करे छे ते कर्मफळनी
वांछाथी ज करे छे. सीधी रीते संसार–भोगने भले न वांछे, राजपाटने छोडीने साधु
थाय ने शुभराग करे, पण ते रागमां अने तेना फळमां ज अटक्यो छे के आनाथी मने
कांईक लाभ थशे. रागनो ज तेने अनुभव छे, रागथी जुदा चैतन्यनो अनुभव तेने
नथी; एटले तेने तो चारगतिनुं ज फळ मळे छे, मोक्षसुखनो स्वाद सम्यग्दर्शन वगर
आवतो नथी.
तारा आत्मानी धर्मक्रिया केवी छे तेने पण तुं ओळखतो नथी, ने संसारना कारणरूप
रागक्रियाने तें धर्मक्रिया मानी लीधी छे. रागथी जुदा चैतन्यनो वीतरागी स्वाद
धर्मीने आव्यो छे, ते धर्मी रागादिनी क्रियाने पोताना ज्ञानस्वभावथी जुदी जाणे छे
अने तेथी ते रागादिना फळनी पण वांछा तेने नथी, आ क्रियाओनुं फळ मने कंईक
सुखनुं कारण थशे के मोक्षनुं साधन थशे–एवी बुद्धि धर्मीने होती नथी.