Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : २१ :
बंधननो छेद केम थाय? के ज्ञानने तेनाथी भिन्न जाणतां ते छेदाई जाय छे – जुदा पडी
जाय छे. निराकुळ चैतन्यस्वादरूप ज्ञान तो हुं छुं, ने रागादि आकुळस्वादरूप बंध ते हुं
नथी, बंनेनुं स्वरूप अत्यंत जुदुं छे. – आ प्रमाणे ज्ञाननो स्वभाव अने बंधनो
स्वभाव बंनेने जुदा जुदा ओळखीने भेदज्ञान करतावेत ज प्रज्ञाछीणी एवी जोरदार
पडे छे के ज्ञानस्वरूप शुद्धात्मामां पोते तन्मय थाय छे, ने सर्वे बंधभावोने
चेतनस्वभावथी बहार अज्ञानभावमां राखे छे. रागादिभावोने ज्ञानपणुं नथी तेथी
तेमने अज्ञानमय कह्या. एककोर ज्ञानमय आत्मा, अने ज्ञानमयभावथी जुदा ते बधा
अज्ञानमयभावो – ते आत्माथी तद्न जुदा; आवुं भेदज्ञान करीने बंधनथी जुदा
चैतन्यस्वभावरूप आत्माने अनुभववो ते ज मोक्षनुं कारण छे. भगवाने आवो
मोक्षनो मार्ग कह्यो छे.
आवो मार्ग वीतरागनो भाख्यो श्री भगवान.
आत्मानुं स्वलक्षण चैतन्य छे. गुण – पर्यायमां व्यापनारा जेटला चैतन्यभावो
छे तेटलो ज आत्मा छे. चैतन्यभाव जेमां नहि ते आत्मा नहीं, रागादिभावोमां
चैतन्यपणुं नथी, ते तो चैतन्यथी भिन्नपणे चेत्य छे. आत्मा चेतक छे, तेनाथी भिन्नपणे
रागादि भावो चेत्य छे. ज्ञानने अने रागने चेतक – चेत्यपणुं छे पण तेमने एकपणुं
नथी, कर्ताकर्मपणुं नथी. बंनेनी जात ज तद्न जुदी छे. जेम चेतन अने जडने एक
जातपणुं नथी, तद्न जुदापणुं छे, तेम ज्ञानने अने रागने पण एकस्वभावपणुं नथी,
बंनेना स्वभाव तद्न जुदा–जुदा छे. आवुं जुदापणुं जाणीने ज्ञानपर्याये ज्ञानमां तन्मय
थईने पोतानो ज्ञानस्वभावपणे अनुभव कर्यो, ने रागथी ते छूटी पडी – ते ज मोक्षनुं
कारण छे. अज्ञानथी पर्याये रागादिमां तन्मयपणुं मान्युं हतुं त्यारे ते पर्याय अंतरना
स्वभावथी विमुख थईने परिणमती, ते संसार हतो. अने ज्यां रागादिथी भिन्नता
जाणीने अंतरमां ज्ञानस्वभावपणे आत्माने अनुभवमां लीधो त्यां द्रव्य – पर्याय
एकबीजानी सन्मुख थया, ज्ञानपर्याय अंतरमां एकाग्र थईने परिणमी, – ने रागथी
सर्वथा छूटी पडी, ते मोक्षनुं कारण छे, अथवा ते ज्ञानपर्यायमां बंधन नथी तेथी ते
मुक्त ज छे. त्यां जे रागने बंधन छे ते कांई ज्ञानपर्यायमां नथी, ज्ञानधारा तो तेनाथी
छूटेछूटी मुक्त ज छे. अहो, आवी ज्ञानधारा सहज परमआनंदरसथी तरबोळ छे.
एकवार भेदज्ञान करीने ज्ञाननो स्वाद तो चाख!
अरे, रागमां तो चैतन्यपणुं ज नथी, तो ते मोक्षनुं साधन केम थाय? रागनो
अनुभव ते तो बंधनो अनुभव छे, तेमां मोक्षनो स्वाद क्यांथी आवे? रागथी भिन्न