आनंदथी भरेलुं सरस छे. ज्ञाननो वीतरागी आनंदरस ए ज साचो रस छे, बाकी
रागादि तो आकुळतावाळा नीरस छे. रागादि बंधने अने ज्ञानरूप आत्माने जुदा
पाडनारुं आवुं ज्ञान ज मोक्षनुं खरूं साधन छे. बीजा कोई साधनथी मोक्ष पमातो नथी.
भेदज्ञानरूप प्रज्ञावडे ज्ञान अने रागनी भिन्नतानो वारंवार अभ्यास करी करीने ज्ञान
ज्यां रागथी भिन्न पडीने अंतर्मुख स्वभावमां वळ्युं त्यां शुद्धआत्मानी अनुभूतिमां
रागनुं वेदन न रह्युं – एनुं नाम भेदज्ञान छे, ते ज प्रज्ञाछीणी छे, ने ते ज मोक्षनुं
साधन छे.
उपाय थतो नथी. शुभभावथी बीजा विकल्पो छोडीने, कर्मबंधथी छूटवाना विचारमां
चित्तने रोक्या करे ने तेनाथी मोक्ष थई जशे एम माने, तो कहे छे के भाई! बंधन
वगरनो ज्ञानस्वरूप तारो आत्मा केवो छे तेने जाण्या वगर तारो बंधनथी छूटकारो
थाय नहीं. कर्मनो विचार करी करीने ज्ञानने तो तें रागमां ज रोकी दीधुं छे, एटले
शुभरागने मोक्षनुं साधन मानीने तारी बुद्धि अंध थई गई छे; मात्र बंधनना शुभ
विचारथी मुक्ति थती नथी, पण बंधनने छेदवाथी मुक्ति थाय छे.