Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : अषाढ : २४९९
मोक्षना कारणरूप भेदज्ञान
ते भेदज्ञानमां आनंदनो रस झरे छे
(समयसार – मोक्षअधिकार प्रवचनोमांथी)
ज्ञानने अने रागने सर्वथा जुदापणुं
छे. ज्ञानलक्षण द्वारा, रागादिथी सर्वथा
भिन्न शुद्धआत्माने अनुभववो, ते ज
मोक्षनुं साधन छे.
* * * * *
मोक्षअधिकारना मंगलाचरणमां प्रथम तो कृतकृत्य ज्ञानने विजयवंत कह्युं ते
ज्ञाने आत्माने बंधनथी सर्वथा छूटो पाडीने मुक्त कर्यो छे, अने ते सहज परम
आनंदथी भरेलुं सरस छे. ज्ञाननो वीतरागी आनंदरस ए ज साचो रस छे, बाकी
रागादि तो आकुळतावाळा नीरस छे. रागादि बंधने अने ज्ञानरूप आत्माने जुदा
पाडनारुं आवुं ज्ञान ज मोक्षनुं खरूं साधन छे. बीजा कोई साधनथी मोक्ष पमातो नथी.
भेदज्ञानरूप प्रज्ञावडे ज्ञान अने रागनी भिन्नतानो वारंवार अभ्यास करी करीने ज्ञान
ज्यां रागथी भिन्न पडीने अंतर्मुख स्वभावमां वळ्‌युं त्यां शुद्धआत्मानी अनुभूतिमां
रागनुं वेदन न रह्युं – एनुं नाम भेदज्ञान छे, ते ज प्रज्ञाछीणी छे, ने ते ज मोक्षनुं
साधन छे.
मात्र बंधनना विचार कर्यां करे, कर्मना अनेक प्रकारोने जाण्या करे, पण जो
ज्ञानने आत्माना स्वभाव तरफ वाळीने बंधथी छूटो न पडे – तो ते जीवने मोक्षनो
उपाय थतो नथी. शुभभावथी बीजा विकल्पो छोडीने, कर्मबंधथी छूटवाना विचारमां
चित्तने रोक्या करे ने तेनाथी मोक्ष थई जशे एम माने, तो कहे छे के भाई! बंधन
वगरनो ज्ञानस्वरूप तारो आत्मा केवो छे तेने जाण्या वगर तारो बंधनथी छूटकारो
थाय नहीं. कर्मनो विचार करी करीने ज्ञानने तो तें रागमां ज रोकी दीधुं छे, एटले
शुभरागने मोक्षनुं साधन मानीने तारी बुद्धि अंध थई गई छे; मात्र बंधनना शुभ
विचारथी मुक्ति थती नथी, पण बंधनने छेदवाथी मुक्ति थाय छे.