शुद्धआत्मानो आश्रय छे तेथी ज सम्यग्द्रर्शन छे.
शुद्धआत्मानो आश्रय छे तेथी ज सम्यग्ज्ञान छे.
शुद्धात्मानो आश्रय छे तेथी ज सम्यक्चारित्र छे.
– आवा निश्चय श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र होय त्यां तेनी साथे कदाच भूमिकाअनुसार
होय, तोपण तेनुं कर्तृत्व धर्मीने नथी, ने ते व्यवहारना आश्रये कांई धर्मीना श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्र टक्या नथी; ते वखते अंदर तेनाथी पण पार जे शुद्धात्मानो आश्रय छे ते
व्यवहारना आश्रयनी बुद्धि छोडावी, – एम भगवाननो उपदेश छे.
रहे? माटे द्रव्यद्रष्टिवंत धर्मात्माने रागादिनुं अकर्तापणुं ज छे,
सम्यक्त्वादि निर्मळभावनुं ज कर्तापणुं छे. शुद्धात्मा हुं – एवा
वेदनमां ‘राग ते हुं’ एवुं वेदन केम आवे? शुद्धात्मामां जेनी
द्रष्टि नथी ने रागमां ज जेनी द्रष्टि छे एवा अज्ञानीने ज
पराश्रित भावमां रागादिनुं कर्तापणुं छे. ज्ञानीने शुद्धात्मानी
परमात्मा वस्या छे, तेमां राग रही शके नहीं.