Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९९
ए ज रीते सम्यग्ज्ञानमां सम्यक्चारित्रमां तेमज तप वगेरेमां परम आनंदसहित
भगवान आत्मा बिराजे छे. तेथी अभेदपणे एम ज कह्युं के शुद्ध आत्मा ज दर्शन–
ज्ञान–चारित्र छे. द्रव्यना आश्रये सम्यत्वादि शुद्धपर्याय थई – एवो भेद न पाडतां,
आत्मा ज सम्यक्त्व छे – एम अभेदपणे कह्युं छे; केमके सम्यक्त्वादि सर्व पर्यायोमां
शुद्ध आत्मा ज आश्रयपणे छे, बीजुं कोई नहीं. स्वसन्मुखी परिणामने स्वमां अभेद
कर्यां; परसन्मुखी व्यवहारने परमां अभेद कर्यो; –आम स्वाश्रय अने पराश्रय
भावोनी (शुद्धतानी अने रागादिनी) स्पष्ट वहेंचणी करी नांखी.
अरे बापु! तारी पर्यायमां तो तुं पोते हो के बीजा? तारा ज्ञानमां तो तारा
आत्मानो आश्रय होय, – के शास्त्रोना शब्दोनो? तारा दर्शनमां तो तारो शुद्धआत्मा
होय के नव तत्त्वना विकल्पो? तारा चारित्रमां तारा आत्मामां रमणता होय के
छकाय जीवोनी दयानो राग होय? रागमां – विकल्पोमां – शब्दोमां क््यांय तारा
दर्शन–ज्ञान–चारित्र नथी, तारा शुद्ध आत्माना आश्रयमां ज तारा दर्शन – ज्ञान –
चारित्र छे.
* ज्यां ज्यां शुद्धात्मानो आश्रय छे त्यां त्यां ज्ञान–दर्शन – चारित्र छे.
* शुद्धात्माना आश्रय वगर पराश्रित व्यवहारभावो करे तोपण त्यां ज्ञान–
दर्शन–चारित्र होतां नथी.
माटे, शुद्धात्माना आश्रये ज मोक्षमार्ग होवानो अबाधित नियम छे, तेथी
मुमुक्षुए शुद्धात्मारूप निश्चय आश्रय करवा जेवो छे. अने परना आश्रये मोक्षमार्ग
होवानो नियम टकतो नथी, तेथी परना आश्रयरूप व्यवहार आदरवा जेवो नथी
पण छोडवा जेवो छे. आ रीते निश्चयनयवडे व्यवहारनो निषेध जाणो. आवा
शुद्धात्मानी सन्मुखतारूप निश्चयनयना आश्रये मुनि भगवंतो निर्वाणने पामे छे.
जैनमार्ग – अनुसार श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रनो जे व्यवयहार छे तेना आश्रये
पण मोक्षमार्ग सधातो नथी, तो पछी जेने जैनमार्गना व्यवहारनी पण खबर नथी,
व्यवहार पण जेनो खोटो छे एनी तो वात ज शी? अरे, निश्चयसहितनो व्यवहार
जेनी पासे छे तेने पण, जेटला पराश्रित व्यवहारभावो छे ते कोई मोक्षनुं कारण
थता नथी. शुद्धात्माना आश्रयरूप निश्चय श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र छे ते ज मोक्षनुं कारण
थाय छे.