भगवान आत्मा बिराजे छे. तेथी अभेदपणे एम ज कह्युं के शुद्ध आत्मा ज दर्शन–
ज्ञान–चारित्र छे. द्रव्यना आश्रये सम्यत्वादि शुद्धपर्याय थई – एवो भेद न पाडतां,
आत्मा ज सम्यक्त्व छे – एम अभेदपणे कह्युं छे; केमके सम्यक्त्वादि सर्व पर्यायोमां
शुद्ध आत्मा ज आश्रयपणे छे, बीजुं कोई नहीं. स्वसन्मुखी परिणामने स्वमां अभेद
कर्यां; परसन्मुखी व्यवहारने परमां अभेद कर्यो; –आम स्वाश्रय अने पराश्रय
भावोनी (शुद्धतानी अने रागादिनी) स्पष्ट वहेंचणी करी नांखी.
होय के नव तत्त्वना विकल्पो? तारा चारित्रमां तारा आत्मामां रमणता होय के
छकाय जीवोनी दयानो राग होय? रागमां – विकल्पोमां – शब्दोमां क््यांय तारा
दर्शन–ज्ञान–चारित्र नथी, तारा शुद्ध आत्माना आश्रयमां ज तारा दर्शन – ज्ञान –
चारित्र छे.
* शुद्धात्माना आश्रय वगर पराश्रित व्यवहारभावो करे तोपण त्यां ज्ञान–
होवानो नियम टकतो नथी, तेथी परना आश्रयरूप व्यवहार आदरवा जेवो नथी
पण छोडवा जेवो छे. आ रीते निश्चयनयवडे व्यवहारनो निषेध जाणो. आवा
शुद्धात्मानी सन्मुखतारूप निश्चयनयना आश्रये मुनि भगवंतो निर्वाणने पामे छे.
व्यवहार पण जेनो खोटो छे एनी तो वात ज शी? अरे, निश्चयसहितनो व्यवहार
जेनी पासे छे तेने पण, जेटला पराश्रित व्यवहारभावो छे ते कोई मोक्षनुं कारण
थता नथी. शुद्धात्माना आश्रयरूप निश्चय श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र छे ते ज मोक्षनुं कारण
थाय छे.