Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : १७ :
शुद्धात्माना ज आश्रय करवा योग्य छे, अने व्यवहार आश्रय करवा जेवो नथी.
* हवे ए रीते सम्यग्ज्ञानमां:– भगवाने कहेला आचारांगादि शास्त्रोनुं
परसन्मुखी ज्ञान करे, पण जो शास्त्रोना शब्दोथी पार शुद्धात्मानो आश्रय करीने तेने न
जाणे तो ते जीवने सम्यग्ज्ञान होतुं नथी.
– अने, जो शुद्धात्मानी स्वसन्मुख थईने तेनुं ज्ञान कर्युं तो, त्यां शास्त्रोना
शब्दोनुं ज्ञान हो के न हो – तो पण सम्यग्ज्ञाननो सद्भाव ज छे. आ रीते शुद्धात्माना
ज आश्रये सम्यग्ज्ञान होवानो नियम सिद्ध थयो. तेथी सम्यग्ज्ञान माटे मुमुक्षुए
निश्चयरूप शुद्धात्मा ज आश्रय करवायोग्य छे, अने व्यवहारनो आश्रय करवा जेवो
नथी.
* ए ज रीते सम्यक्चारित्रमां:– जिनदेवे कहेला छकायजीवोनी रक्षारूप अहिंसा
वगेरे पंचमहाव्रतना शुभपरिणाम होवा छतां, ते शुभथी पार एवा शुद्धात्मानो
आश्रय करीने तेमां जो न ठरे तो ते जीवने सम्यक्चारित्र होतुं नथी.
अने, जे जीव शुद्धात्मानी सन्मुख थईने तेमां लीन थयो छे तेने छकायजीवोनी
रक्षा वगेरेना विकल्पो हो के न हो –तोपण सम्यक्चारित्रनो सद्भाव ज छे. आ रीते
शुद्धात्माना ज आश्रये सम्यक्चारित्र होवानो नियम सिद्ध थयो. तेथी सम्यक्चारित्र
माटे पण मुमुक्षुए निश्चयरूप शुद्धात्मा ज आश्रय करवा योग्य छे, अने व्यवहारनो
आश्रय छोडवा जेवो छे. –
व्यवहारनय ए रीत जाण निषिद्ध निश्चयनय थकी,
निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी. (२७२)
अहो, स्वाश्रयरूप निश्चय सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–चारित्रनो नियम बतावीने
आचार्यदेवे मोक्षमार्गनुं स्वरूप स्पष्ट समजाव्युं छे. स्वाश्रये प्रगटेली सम्यक्त्वादि
शुद्धपर्यायोने आत्मामां अभेद करीने तेने शुद्ध आत्मा ज कह्यो. अने आत्माने भूलीने
एकला पराश्रये जे परसन्मुखी भावो थया तेने परमां अभेद कर्यां, परसन्मुखी
भावमां आत्मा तो न आव्यो, अरे, जेमां आत्मा न आवे, जेमां आत्मानी शांतिनुं
वेदन न आवे एने ते श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र कोण कहे? – एने मोक्षनुं कारण कोण कहे?
सम्यग्द्रर्शनमां तो अपूर्व शांतिना वेदनसहित आखो आत्मा आव्यो छे;