Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९९
मोक्षना कारणरूप श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र
तेमां शुद्धात्मानो ज आश्रय छे, कोई बीजानो नहीं.
(समयसार गाथा २७६–२७७ ना प्रवचनमांथी)
आत्माने बंधनथी छूटकारो ने मोक्षनुं साधन कई रीते थाय? ते कहे छे.
आत्मानो जे शुद्धस्वभाव तेना आश्रये थता सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षनो
उपाय छे. शास्त्रना आलंबने थतुं ज्ञान, नवतत्त्वनी श्रद्धा के छकायजीवोनी दया
एवो जे व्यवहार छे तेमां परनुं अवलंबन छे, तेना आश्रये मोक्षनुं साधन थतुं
नथी. ते व्यवहार श्रद्धा–ज्ञान–आचरणना विकल्पो न हो के हो, तेना आश्रये कांई
मोक्षमार्ग नथी. मोक्षमार्ग शुद्धात्माना आश्रये ज छे.
ज्यां ज्यां सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–चारित्र होय त्यां त्यां शुद्धात्मानो आश्रय होय
ज छे, तेथी अभेदद्रष्टिरूप निश्चयमां तो शुद्धआत्मा पोते दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे.
पण, ज्यां ज्यां सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–चारित्र होय त्यां त्यां व्यवहारश्रद्धा
वगेरेना विकल्पो होय ज छे – एवो नियम साबित थतो नथी, केमके व्यवहारना ते
विकल्पो वगर पण निश्चय सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–चारित्र शुद्धात्माना आश्रये विद्यमान
वर्ते छे. माटे नवतत्त्व वगेरे संबंधी विकल्पो ते कांई सम्यक्त्वादिनो आधार नथी.
भाई, तारा साचा सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–आनंदमां तो तारा आत्मानो ज
आश्रय होय के बीजानो होय? मोक्षना कारणरूप जे साचा सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–चारित्र
छे ते आत्माना आश्रये ज थाय छे, परनो आश्रय तेमां क्यांय जरा पण नथी.
जराक पण परना आश्रयथी जे लाभ माने तेणे साचा मोक्षमार्गने जाण्यो नथी.
* जैनमार्ग – अनुसार जीवादि नवतत्त्वोना भेदने जाणे पण जो भेदथी पार
शुद्धात्मानो आश्रय करीने तेनी श्रद्धा न करे तो ते जीवने सम्यक्त्व होतुं नथी.
भेदना विकल्पो हो के न हो – तोपण सम्यक्त्वनो सद्भाव ज छे. आ रीते
शुद्धात्माना ज आश्रये सम्यक्त्व होवानो नियम सिद्ध थयो. तेथी सम्यक्त्व माटे
मुमुक्षुए निश्चयरूप