Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : १५ :
वीतरागने सेवनारा विद्वानो रागने भलो केम माने? सर्वे रागने, शुभरागने पण
दुःखरूप जाणीने तेओ तेने छोडे छे, ने चैतन्यना अद्वितीयसुखने अनुभवे छे. – आ ज
सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान– चारित्र छे, आ ज प्रत्याख्यान तथा संवर छे, आ ज धर्म अने
मोक्षमार्ग छे, आ ज जैन गुरुओनी शिखामण छे, ने आ ज जैनशासननो सार छे.
मुनिराज कहे छे के अमे कर्युं तेम तुं पण शीघ्र कर
जे मुक्तिसाम्राज्यनुं मूळ छे एवा आ निरूपम सहज परम आनंदमय
चैतन्यस्वरूपने एकने ज डाह्या पुरुषोए सम्यक् प्रकारे ग्रहवुं योग्य छे; तेथी हे सखा, हे
मित्र! मारा आ उपदेशना सारने सांभळीने तुं पण आ चैतन्यचमत्कारमां तारी मतिने
शीघ्र जोड.
मुनिराज कहे छे के आत्माना मार्गे अमे मोक्षमां जईए छीए अने तने पण ते
मार्ग बतावीए छीए. माटे हे सखा! तुं पण अमारी साथे ज मोक्षना मार्गमां चाल हे
सखा! मोक्षना मार्गमां अमारी साथे आववा माटे तुं तुरत ज अमारी जेम तारा
चैतन्यचमत्कारने अनुभवमां ले. जुओ तो खरा, मुनिराज केवा वात्सल्यथी
मोक्षमार्गनी प्रेरणा करे छे! मित्र कहीने संबोधे छे के हे मित्र! तुं पण अमारी साथे ज
मोक्षमां चाल. सारी वस्तु होय त्यारे पोताना मित्रने याद करीने आपे छे, तेम
मुनिराज करे छे के हे मोक्षना रसिक मित्र! चैतन्यनुं आवुं अद्भुत सुख अमे चाख्युं
छे, ते सुखने तुं पण हमणां ज चाख..... अने अमारी साथे मोक्षना मार्गमां आव.
* * * * *
शरीरनुं – कुटुंबनुं शुं थशे एवा विकल्पना
कोलाहलने मुक एक कोर, ने चैतन्यस्वभावना महिमानुं
घोलन कर. अंतर्मुख थवानो प्रयत्न छ महिना कर, ने
बहिर्मुखनी चिंता छोड. तुं बहारनी चिंता कर तोपण तेनुं
जे थवानुं ते थवानुं छे, ने तुं चिंता न कर तोपण तेनुं कांई
अटकी जवानुं नथी. माटे तुं तेनी चिंता छोडीने एकवार तो
सततपणे तारा आत्माना प्रयत्नमां लाग.... छ महिना तो
चैतन्यना चिंतनमां तारा उपयोगने जोड. आवा धारावाही
प्रयत्नथी जरूर तने आनंदसहित तारा अंतरमां आत्मानो
अनुभव थशे.