दुःखरूप जाणीने तेओ तेने छोडे छे, ने चैतन्यना अद्वितीयसुखने अनुभवे छे. – आ ज
सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान– चारित्र छे, आ ज प्रत्याख्यान तथा संवर छे, आ ज धर्म अने
मोक्षमार्ग छे, आ ज जैन गुरुओनी शिखामण छे, ने आ ज जैनशासननो सार छे.
मित्र! मारा आ उपदेशना सारने सांभळीने तुं पण आ चैतन्यचमत्कारमां तारी मतिने
सखा! मोक्षना मार्गमां अमारी साथे आववा माटे तुं तुरत ज अमारी जेम तारा
चैतन्यचमत्कारने अनुभवमां ले. जुओ तो खरा, मुनिराज केवा वात्सल्यथी
मोक्षमार्गनी प्रेरणा करे छे! मित्र कहीने संबोधे छे के हे मित्र! तुं पण अमारी साथे ज
मोक्षमां चाल. सारी वस्तु होय त्यारे पोताना मित्रने याद करीने आपे छे, तेम
मुनिराज करे छे के हे मोक्षना रसिक मित्र! चैतन्यनुं आवुं अद्भुत सुख अमे चाख्युं
छे, ते सुखने तुं पण हमणां ज चाख..... अने अमारी साथे मोक्षना मार्गमां आव.
घोलन कर. अंतर्मुख थवानो प्रयत्न छ महिना कर, ने
बहिर्मुखनी चिंता छोड. तुं बहारनी चिंता कर तोपण तेनुं
जे थवानुं ते थवानुं छे, ने तुं चिंता न कर तोपण तेनुं कांई
अटकी जवानुं नथी. माटे तुं तेनी चिंता छोडीने एकवार तो
सततपणे तारा आत्माना प्रयत्नमां लाग.... छ महिना तो
चैतन्यना चिंतनमां तारा उपयोगने जोड. आवा धारावाही
अनुभव थशे.