Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 41

background image
: १४ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९९
जेम देवोनुं अमृत पोताना कंठमांथी ज झरे छे, बहारथी नथी आवतुं, तेम आ
चैतन्यसुखरूप अतीन्द्रिय अमृत आत्माना पोताना असंख्यप्रदेशमांथी ज झरे छे, ते
क्यांय बहारमांथी के रागमांथी नथी आवतुं.
चैतन्यसुख केवुं छे?
द्वंद्व रहित छे; – जेमां पोताना चैतन्यतत्त्व सिवाय कोई बीजा साथे जराय
संबंध नथी; वळी उपद्रव रहित छे; चैतन्यसुखमां कोई उपद्रव नथी, बहारमां सिंह
खाय के शरीर बळे तोपण चैतन्यसुखमां कांई विघ्न थतुं नथी. चैतन्यसुखमां लीन
पांडवोने बहारमां शरीर बळतुं होवा छतां तेमना चैतन्यसुखमां भंग न पड्यो, तेओ
तो चैतन्यसुखमां लीनपणे केवळज्ञान पाम्या. आवुं उपद्रव वगरनुं चैतन्यसुख छे. वळी
ते उपमा रहित छे, जगतना कोई पदार्थ वडे चैतन्यसुखने ओळखावी शकातुं नथी.
ईन्द्रोनी विभूति वडे पण चैतन्यसुखना कोई अंशने सरखावी शकातो नथी. वळी आ
सुख नित्य छे, आत्माना स्वभावी ज थयेलुं होवाथी ते नित्य छे, संयोगना फेरफारे
तेमां फेरफार थई जतो नथी केमके संयोगना आधारे ते सुख थयुं नथी. पोताना
आत्माथी ज उत्पन्न थयेलुं छे, तेमां कोई अन्य द्रव्यनी भावना नथी, बीजा कोईनो
आश्रय चैतन्यसुखमां नथी. चैतन्यना आश्रये चैतन्यनी भावनाथी आत्मा पोते परम
सुखरूप थयो छे. – अहो, केवुं अद्भुत चैतन्यसुख छे!
अहो, आवा चैतन्यसुखना अमृत पासे पुण्यनी शुभलागणी पण दुःखरूप लागे
छे, तेथी तेने पण दोडीने संतो चैतन्यचिंतामणिमां ज उपयोगने एकाग्र करीने
परमानंदने अनुभवे छे.
अहा, जैन गुरुओना सम्यक् सेवन वडे अद्भुत चैतन्महिमा जाणीने
अतीन्द्रियसुख अमे चाख्युं त्यां हवे कोई पण परद्रव्य के रागनो कोई अंश अमने
अमारा स्वरूपपणे भासतो नथी. चैतन्यसुखथी भरेलो आत्मा ते ज एक स्वद्रव्यपणे
अनुभवाय छे. आवो अनुभव ए ज साची गुरुसेवा छे, ए ज गुरुआज्ञा छे.
अहो, अपार महिमावंत तारो चैतन्य आत्मा छे तेमां जा ने परथी खसी जा...
एम श्रीगुरु फरमावे छे. ते प्रमाणे श्रीगुरुनी सेवाथी जेणे जाणी लीधुं छे ते विद्वान हवे
रागनो के परनो महिमा केम करे? चैतन्यना अपूर्व महिमाने जे जाणे छे ते ज साचो
विद्वान छे, ने तेणे ज गुरुनी आज्ञा पाळी छे. अहा, चैतन्यना शरणमां जे शांति आवे
छे ते शांति क््यांय कोई परद्रव्यना शरणे आवती नथी.