Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : १३ :
वेदनस्वरूप छे, ते सुखमां विकल्पनीये अपेक्षा क््यां छे? जगतना जड चिंतामणि रत्न
पासे तो वस्तु मांगवी पडे त्यारे ते मळे; आ चैतन्यमणि तो माग्या वगर (विकल्प
वगर) स्वयमेव पोते ज अनंतसुखनिधानपणे परिणमे छे; बीजा कोई पदार्थनी
अपेक्षा तेने नथी. – आवा आत्मचिंतनमां धर्मीनुं चित्त चोंटयुं छे; दुनिया फरे तोपण
ते हवे फरे तेम नथी.
अहा, चैतन्यना आनंदनो अतीन्द्रियरस चाख्या पछी हवे देवोना अमृतमां पण
अमारुं चित्त लागतुं नथी. आत्मानुं सुखनिधान अंदर देख्युं त्यां हवे बीजा कोई
पदार्थथी अमारे शुं प्रयोजन छे? अमारा चैतन्यमां अमारी परिणति प्रवेशी गई
तेमांथी छोडाववा हवे कोई समर्थ नथी. अंदर चैतन्यसुखमां घूस्या ते घूस्या, हवे
तेमांथी बहार आववाना नथी ने परभावमां – दुःखमां जवाना नथी. आनंद
स्वभावने ग्रह्यो छे, ने हवे सदाय आनंदरूपे ज रहीशुं.
स्वर्गना देवोने अनाज वगेरेनो आहार होतो नथी, तेओ तो पोताना कंठमांथी
झरता अमृतनो ज आहार लेनारा छे. अमृतनो स्वाद लेनारा देवोने अनाजनुं पण
प्रयोजन नथी तो पछी विष्टा वगेरेनी तो शी वात? तेम अतीन्द्रिय आनंदना
चैतन्यरसथी भरेलो आ चैतन्यदेव, तेनुं जेने भान थयुं अने स्वसंवेदनमां चैतन्यरस
चाख्यो, त्यां ते चैतन्यरसना महान वीतरागी स्वाद पासे जगतना पुण्य–पापना कोई
स्वादमां एनुं चित्त लागतुं नथी. अहा, ज्ञानात्मक सुखनो स्वाद लेनारो आ चैतन्यदेव,
तेने पुण्यनो रस पण चैतन्यथी तद्न जुदो लागे छे त्यां पापना रसनी तो क््यां वात?
पुण्य–पाप वगरनो अपूर्व चैतन्यरस, तेनो स्वाद अज्ञानीओए कदी चाख्यो नथी, ते
चैतन्यसुखनी कल्पना पण तेओ करी शकता नथी. अहा, एकवार चैतन्यसुखनो स्वाद
जेणे चाख्यो तेने जगतना कोई पदार्थोमां के शुभाशुभ भावोमां रस रहे नहि,
चैतन्यसुख सिवाय बीजे क््यांय तेनुं चित्त ठरे नहि.... चैतन्यसुखथी बीजुं कोई तेने
ललचावी शके नहि.
देवोनुं अमृत ते तो जड–पुद्गलनो रस छे, तेमां कांई चैतन्यसुख नथी; अने
आ तो चैतन्यसुखनुं अतीन्द्रिय अमृत, जेने चाख्या पछी संसारमां जन्म –मरण न
रहे. चैतन्यना अमृतरस पासे देवोनुं अमृत पण साव नीरस छे. चैतन्यसुखना
नीराकुळ अमृत पासे पुण्यना सुकृत पण आकुळतारूप होवाथी दुःखरूप लागे छे; तेथी
धर्मात्मा–मुनिवरो तेने पण छोडीने अद्वितीय चैतन्यसुखमां लीन थाय छे.
अहा, आत्मामांथी ज आनंदना अमृतना फूवारा फूटे एनुं नाम धर्म छे.