Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : २३ :
एक स्वभावपणुं नथी, बंने वच्चे सांध छे – तिराड छे – लक्षणभेद छे, तेने
ओळखीने प्रज्ञाछीणीवडे जुदा करी शकाय छे, एटले अंतर्मुख प्रज्ञावडे रागथी जुदुं
ज्ञान अनुभवी शकाय छे. आवो अनुभव ते ज बंधथी छूटवानो ने मोक्षने
पामवानो उपाय छे.
अरे, भेदज्ञाननी आवी वात काने पडवा छतां, सांभळीने जे अंदर यथार्थ
अनुभवनो प्रयोग नथी करतो, ते तो बहेरो छे. अंदर ज्ञानमां प्रयोग न कर्यो तो
सांभळ्‌युं शुं कामनुं? बापु! तुं तो चैतन्यदीवो छो. दीवो तो प्रकाशस्वरूप छे, तेना
प्रकाशमां कोई मलिन वस्तु जणाय तोपण दीवो कांई मेलो नथी, दीवो तो
प्रकाशस्वभावी दीवो ज छे. तेम चैतन्यदीवो आत्मा छे ते तो प्रकाशस्वरूप ज छे,
तेना ज्ञानप्रकाशमां कोई रागादि बंधभावो ज्ञेयपणे जणाय तेथी कांई ज्ञान पोते
रागादिरूप मेलुं थई जतुं नथी, ज्ञानदीवो तो ज्ञानस्वरूप ज छे. ज्ञाननो स्वाद तो
रागथी जुदी जातनो चैतन्यमय छे. ज्ञानना आवा भिन्नस्वाद वडे आत्माने
रागादिथी अत्यंत जुदो अनुभववो तेनुं नाम भगवतीप्रज्ञा छे, ते ज मोक्षनुं साधन
छे.
राग ज्ञानमां ज्ञेयपणे जणाय छे, त्यारे ते रागने जाणनारुं ज्ञान ज आत्मानुं
लक्षण छे, कांई राग आत्मानुं लक्षण नथी. रागने अने ज्ञानने चेत्य–चेतकपणुं छे ते
तो आत्माने ज्ञानस्वभावपणे जाहेर करे छे के आ जाणनार स्वभाव छे ते आत्मा
छे; – पण ते कांई एम जाहेर नथी करतुं के आ राग छे ते आत्मानो स्वभाव छे.
रागने तो ते ज्ञानथी भिन्नपणे जाहेर करे छे. ज्ञान अने रागनी आवी भिन्नता
जाणवी ते खरी तीक्ष्णबुद्धि छे; बाकी तो बधा जाणपणा थोथां छे. अरे, एकवार तो
प्रज्ञाने अंतर्मुख करीने रागथी जुदा ज्ञाननो स्वाद ले. तारुं ज्ञान सर्वे बंधभावोथी
छूटुं तने अनुभवमां आवशे.
राग वखते ज्ञान ते रागने जाणे, त्यां धर्मीने एम संदेह नथी के मारुं ज्ञान
आ रागरूप थई गयुं. धर्मी तो निःसंदेह पोताने रागथी जुदा ज्ञानपणे ज अनुभवे
छे, एटले रागने प्रकाशतां पण पोताने ज्ञानपणे ज प्रसिद्ध करे छे, रागपणे नहि;
ज्ञानमां ने रागमां एकपणुं जराय प्रतिभासतुं नथी, सर्वथा जुदापणुं ज भासे छे.
आनुं नाम भेदज्ञान; आ धर्म छे, ने आ ज मोक्षनुं साधन छे.
आत्माना मोक्षनुं साधन आत्माथी जुदुं न होय, आत्माथी अभिन्न ज होय.
प्रज्ञाछीणी एटले अंतर्मुख थईने आत्माने अनुभवनारुं ज्ञान, ते ज आत्माने
बंधथी