Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९९
भिन्न करवानुं साधन छे; आ सिवाय बीजा कोईपण साधननो निश्चयथी अभाव छे,
एटले के ज्ञानना अनुभवथी जुदुं बीजुं कोई मोक्षनुं साधन छे ज नहीं.
प्रज्ञावडे आत्मा अने बंध जुदा केम थई शके? तो कहे छे के तेमनो बंनेनो
स्वभाव एक नथी पण बंनेनो स्वभाव जुदो ज छे, तेथी भिन्न–भिन्न लक्षणोवडे
तेमने जुदा जाणीने जुदा करी शकाय छे. – आम अमे जाणीए छीए. सूक्ष्म ज्ञानवडे,
अंतर्मुख स्वसंवेदनज्ञानवडे रागथी जुदा ज्ञानस्वादपणे आत्मा अनुभवाय छे.
आचार्यदेव कहे छे के आवो अनुभव अमे कर्यो छे; भिन्नपणुं थई शके छे ते तने कहीए
छीए. ज्ञान अने राग वच्चे मोटो लक्षणभेद छे, मोटी सांध छे, तेथी सूक्ष्मज्ञानवडे
तेमने जुदा जाणी शकाय छे. ज्ञान अने रागने एकता नथी पण स्वभावथी भिन्नता छे,
तेओ बंने सांध वगरना नथी पण तेमनी वच्चे सांध छे – तीराड छे, तेथी तेमनी
भिन्नतानो अनुभव सूक्ष्म ज्ञानवडे थई शके छे. अहो! आवुं अंतरनुं भेदज्ञान
भगवान जिनेश्वरदेवना मार्गमां ज छे. अंतरमां आवुं भेदज्ञान करे त्यारे तो हजी
सम्यग्द्रर्शन थाय; – पछी मुनिपणुं ने केवळज्ञान ते तो बहु ऊंची चीज छे. भाई,
एकवार आवुं भेदज्ञान करीने तारा आत्माने ज्ञानलक्षणवडे सर्वे बंधनथी जुदो जाण...
तो अल्पकाळमां बंधनथी तारो छूटकारो थई जशे.
चैतन्यभाव अने रागादिभाव, ए बंनेना स्वभावने जुदा ओळखतां, ज्ञान
अंतरमां चैतन्यस्वभाव साथे ज तन्मय थईने परिणम्युं एटले ते रागथी सर्वथा जुदुं
परिणम्युं, – आनुं नाम भेदज्ञान छे, ने आ ज बंधने छेदनारी सूक्ष्म छीणी छे.
रागादिमां वर्ततुं अज्ञान ते तो स्थूळ छे, बंधने छेदवानी ताकात तेनामां नथी.
रागथी जुदुं चैतन्यमां वर्ततुं ज्ञान ते अत्यंत सूक्ष्म छे, ते बंधनने आत्माथी सर्वथा जुदुं
करी नांखे छे; पोते रागादि बंधभावोथी छूटुं पडीने आत्माना ज्ञानस्वभावमां एकाग्र
थाय छे. – आवी ज्ञानधारारूप भगवतीप्रज्ञा ते पोते आनंदमय छे, अने ते ज मोक्षनुं
साधन छे.