एटले के ज्ञानना अनुभवथी जुदुं बीजुं कोई मोक्षनुं साधन छे ज नहीं.
अंतर्मुख स्वसंवेदनज्ञानवडे रागथी जुदा ज्ञानस्वादपणे आत्मा अनुभवाय छे.
आचार्यदेव कहे छे के आवो अनुभव अमे कर्यो छे; भिन्नपणुं थई शके छे ते तने कहीए
छीए. ज्ञान अने राग वच्चे मोटो लक्षणभेद छे, मोटी सांध छे, तेथी सूक्ष्मज्ञानवडे
तेमने जुदा जाणी शकाय छे. ज्ञान अने रागने एकता नथी पण स्वभावथी भिन्नता छे,
तेओ बंने सांध वगरना नथी पण तेमनी वच्चे सांध छे – तीराड छे, तेथी तेमनी
भिन्नतानो अनुभव सूक्ष्म ज्ञानवडे थई शके छे. अहो! आवुं अंतरनुं भेदज्ञान
भगवान जिनेश्वरदेवना मार्गमां ज छे. अंतरमां आवुं भेदज्ञान करे त्यारे तो हजी
सम्यग्द्रर्शन थाय; – पछी मुनिपणुं ने केवळज्ञान ते तो बहु ऊंची चीज छे. भाई,
तो अल्पकाळमां बंधनथी तारो छूटकारो थई जशे.
परिणम्युं, – आनुं नाम भेदज्ञान छे, ने आ ज बंधने छेदनारी सूक्ष्म छीणी छे.
करी नांखे छे; पोते रागादि बंधभावोथी छूटुं पडीने आत्माना ज्ञानस्वभावमां एकाग्र
थाय छे. – आवी ज्ञानधारारूप भगवतीप्रज्ञा ते पोते आनंदमय छे, अने ते ज मोक्षनुं