Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 28 of 41

background image
: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : २५ :
तेनो महिमा, अने तेनी आराधनानो उपदेश
अहो, जगतमां जीवने परम सुखनुं कारण सम्यग्ज्ञान
छे, सम्यग्ज्ञान समान सुखनुं कारण बीजुं कोई नथी; पुण्य के
पापना भाव सुखनुं कारण नथी, बहारनो कोई वैभव सुखनुं
कारण नथी; अंतरमां चैतन्यनुं ज्ञानपरिणमन ज जीवने
सर्वत्र सुखनुं कारण छे. जन्म – जरा – मरणना रोगने
नीवारवा माटे आ सम्यग्ज्ञान परम अमृत छे. सम्यग्ज्ञानरूपी
अमृत वडे जन्म – मरणनो नाश करीने जीव अमरपदने पामे
छे. माटे आवा सम्यग्ज्ञाननी तमे आराधना करो.
सम्यग्द्रर्शनसहितनुं जे सम्यज्ञान छे तेना बे भेद छे – एक परोक्ष अने बीजुं
प्रत्यक्ष.
मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान ए बन्ने ईंद्रियो तथा मन द्वारा उपजे छे तेथी ते
परोक्ष छे.
अवधिज्ञान अने मनःपर्ययज्ञान ए बन्ने एकदेश – प्रत्यक्ष छे, तेना वडे जीव
मर्यादित द्रव्य–क्षेत्र – काळ – भावने, ईन्द्रिय – मनना अवलंबन विना प्रत्यक्ष –स्पष्ट
जाणे छे.
केवळज्ञान संपूर्ण प्रत्यक्ष छे; केवळीभगवंत समस्त द्रव्यना अनंतगुणोने तेमज
अनंतपर्यायोने एक साथे प्रत्यक्ष जाणे छे. जाणवामां एने कोई द्रव्य–क्षेत्र–काळ–
भावनी मर्यादा नथी. अहो, आ केवळज्ञाननो अद्भुत – अचिंत्य महिमा छे. एनी
ओळखाण करतां पण जीवने ज्ञानस्वभावनी प्रतीत सहित, अतीन्द्रिय सुखना वेदनथी
भरेलुं सम्यग्ज्ञान प्रगटे छे, प्रवचनसारमां आचार्यदेवे तेनो घणो महिमा