Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : ३७ :
जय गीरनार









गीरनारधाम उपर बेठाबेठा पू. गुरुदेवे, भक्तिभीनस हृदये
नेमिनाथ भगवानना स्मरणपूर्वक लखेला आ हस्ताक्षर छे.
अरिहंतोनो मेळो.... गीरनारनुं गौरव....!
सौराष्ट्रनुं पवित्रधाम गीरनार... नेमिनाथ तीर्थंकरना त्रण कल्याणकथी पावन
थयुं छे.... प्रभु अवारनवार गीरनार पधारता ने धर्मोपदेश देता... श्री कृष्ण वगेरे पण
प्रभुना दर्शन करवा आवता. –आ वात तो घणा वांचको जाणता हशे.... परंतु ए वखते
गीरनार उपर केटला अरिहंत भगवंतोनो मेळो भरातो – एनी घणाने ओछी खबर
हशे. नेमिनाथप्रभु तो अरिहंतपदे बिराजता ज हता, तेमनी साथे समवसरणमां बीजा
पण अरिहंतभगवंतो बिराजता हता. – केटला खबर छे? बेपांच के पचीस–पचास
नहीं पण एक हजार ने पांचसो केवळी अरिहंत भगवंतो त्यां बिराजता हता. वाह!
गीरनार उपर दोढ–दोढहजार अरिहंतो एक साथे बिराजता हता, ए वखते ए दोढ
हजार अरिहंतोना वीतरागी मेळाथी गीरनार केवो शोभतो हशे! आजे पण गीरनारने
जोतां ए मधुरा द्रश्योनी स्मृति आह्लाद जगाडे छे. अहा, धन्य सौराष्ट्रनी धरणी के
ज्यां एकसाथे दोढ हजार जिनेन्द्रभगवंतो आकाशमां विचरतां हता!