जेवी अथवा छीणी जेवी छे.
बुद्धिमान मुमुक्षु जीव कलेशना नाशने माटे विकल्पजाळरूप सेवाळने दूर करीने
स्वात्मध्यानरूप स्वच्छ अमृतनुं पान करे छे.
बीजो तप नथी, आत्मध्यान सिवाय बीजो कोई मोक्षमार्ग नथी.
पुत्रथी, सेवकथी, राज्यथी, अधिकारथी, उत्तम वाहनथी, बळथी, मित्रथी,
पंडिताईथी के रूप वगेरेथी संतुष्ट थईने पोतानो जन्म सफळ माने छे. परंतु हुं
तो, अत्यंत कठिनताथी प्राप्त जे आत्मा अने देहनुं भेदविज्ञान, – तेना वडे ज
मारा जन्मने सफळ मानुं छुं ने तेना वडे ज हुं संतुष्ट छुं.
ते कर्मपर्वतना मस्तक पर आ भेदज्ञानरूपी वज्र नथी पडतुं. भेदज्ञानरूपी वज्र
दुर्लभ छे; चैतन्यस्वरूपनुं पतिपादन करनारां शास्त्रोनी प्राप्ति तेनाथी पण
दुर्लभ छे; तेनाथी पण चैतन्यस्वरूपना उपदेशक गुरु मळवा मोंघा छे; अने
भेदज्ञानवडे चैतन्यस्वरूपनो अनुभव ते तो चिंतामणिरत्ननी प्राप्ति समान
दुर्लभ छे.
(अहा, आवा दुर्लभ चैतन्यरत्नने पामीने धर्मी पोताने कृतकृत्य अनुभवे छे.)