एवा मुमुक्षुओने माटे तो आ एक ज मार्ग छे. अहा, चैतन्यतत्त्वने ज्यां लक्षमां लीधुं
त्यां तो शांतिनो मोटो पहाड होय – एवी शांति धर्मात्माने प्रगटे छे. जगतमां सुखीया
ते संत– सम्यग्द्रष्टि ज छे.
शरीर ए तो भवनी मूर्ति छे, – तेना आश्रये तो भवनी ने दुःखनी उत्पत्ति
आ भवनी मूर्ति एवा शरीरथी छूटा पडीने, आनंदमय आत्माना अवलंबने अमे
मोक्षना मार्गे जई रह्या छीए. आत्मानुं दर्शन थतां अंदरथी पडकार आवे छे के बस!
हवे अमे संसारना पंथेथी पाछा वळ्या छीए ने मुमुक्षुओ जे पंथे गया ते मोक्षना पंथे
जईए छीए. शांतिनो पहाड अमने प्राप्त थयो छे. जेम हिमालय पर्वत बरफथी
छवायेलो छे तेथी तेने हिमालय (हिमराशि) कहेवाय छे; तम आ चैतन्यपहाड आत्मा
शांतिनी वीतरागी ठंडकथी छवायेलो छे, शांतिनो मोटो ढगलो छे. आवी शांतिमां जे
परिणति घूसी गई ते परिणति हवे विभावने पामती नथी; ते संसारदुःखथी छूटीने
मोक्षसुखने वेदे छे. आज मुमुक्षुओनो मार्ग छे. मोक्षनो पंथ कहो के मुमुक्षुओनो मार्ग
कहो, ते आ एक ज छे के अंदर जे पुण्य–पापथी जुदो शांतिनो हिमालय आत्मा, तेनो
आश्रय करवो. अमारो मुमुक्षुओनो मार्ग तो आनंदमय छे, ते कांई रागमय नथी, तेमां
अशांति नथी; असंख्यप्रदेशमांथी परम शांतिना कूवारा झरे एवो आ मार्ग छे. – मुमुक्षु
निःशंकताथी कहे छे के आवो मार्ग अमारा आत्मामां प्रगट्यो छे, ने आवा मार्गे अमे
मोक्षमां जई रह्या छीए.
होय तेने तो ते बंधनुं कारण समजे छे. अरे, रागना सेवनमां ते कांई शांति होय?
एमां ते कांई मोक्षमार्ग होय?
छे पण ए तो अस्थिर छे, पुद्गलस्कंधनो ढगलो छे; ने आत्मा तो असंयोगी