Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : ३ :
शांतिनो ढगलो छे, ज्ञानस्वरूपे सदा स्थिर रहेनारो छे; ते शांतिनी मूर्ति आत्मानो तुं
आश्रय कर. तेना आश्रये तुं भवथी छूटी जईश.
धर्मी कहे छे के आ शरीरने अने मारे कांई ज संबंध नथी. शरीरथी मने
ओळखनाराओ मने ओळखता ज नथी. हुं तो शरीरथी अत्यंत जुदो, ज्ञानमूर्ति छुं;
एवा ज्ञानमूर्ति शांतिना समुद्रमां घूसीने हुं तो मोक्षना मार्गे जाउं छुं. शरीरमां हुं नथी.
हुं तो शरीरथी बीजे छुं, – क्यां? के अनंत शांतिना हिमालयमां प्रवेशीने शुद्ध चैतन्यनी
भावनामां ज हुं बेठो छुं; ते ज हुं छुं. आवी शुद्ध चैतन्यनी भावना मारा भवरोगना
नाशनुं अमोघ औषध छे. बस, अमारा चित्तमां तो आ चैतन्यप्रभु ज वस्या छे. शुभ–
अशुभ (सुकृत के दुष्कृत) एवी कर्मजाळथी छूटो पडीने, चैतन्य प्रभुना खोळे बेठो छुं,
तेनो आश्रय लीधो छे, हवे अमने कोई चिंता नथी; केमके चैतन्यना आश्रये
भवरोगनो नाश अने मोक्षसुखनी प्राप्ति थाय छे. माटे भवनो नाश करनारी एवी
चैतन्यभावनामां ज हुं एकाग्र छुं... वीतरागी ठंडकना हिमालयमां जईने बेठो छुं,
शांतिना हिमालयमां प्रवेशीने हुं मुमुक्षुमार्गे जाउं छुं.
अहो, वचनातीत चैतन्यवस्तु! गुरुउपदेशना प्रसादे आवी चैतन्यवस्तुनुं सुख
स्वादमां आव्युं त्यां हवे सम्यग्द्रष्टिने त्रणकाळ त्रणलोकमां बीजी कोई वस्तु आनाथी
सुंदर लागती नथी. चैतन्यनी शांति स्वयंभूरमणसमुद्र करतां पण वधु गंभीर छे.
आवा चैतन्यनी विस्मयता – महिमा छोडीने बीजे क््यांय कोई वस्तुमां जेने विस्मयता
ने रस छे तेने चैतन्यरसनो स्वाद आवतो नथी. एवा जीवोने परमसुखनो समुद्र
सदाय दुर्लभ छे; अने धर्मात्माजीवोना हृदयमां आ परमसुखरूप चैतन्यतत्त्व सदाय
वसे छे, एक क्षण पण खसतुं नथी. आवा तत्त्वना सुखनो अनुभव थयो, त्यां तो
आत्मा जागी ऊठ्यो, त्यां हवे मोहनिद्रा केवी? आवुं तत्त्व अमारा अंतरमां, अमारी
परिणतिमां जयवंत वर्ते छे. अमारुं तत्त्व अमारा अनुभवमां प्रसिद्ध थईने विद्यमान
वर्ते छे.
अहो, संतोए चैतन्यतत्त्वने अनुभवमां लईने प्रसिद्ध कर्युं छे. अरे, आनंदनो
सागर अंदर पोतामां देख्यो तेने हवे पोताथी बहार बीजे क््यांय ठीक लागतुं नथी.
अंतरमां परम महिमावंत पोताना चैतन्यतत्त्वनुं आलोचन – अवलोकन–अनुभव
करतो करतो, ने क्रोधादि सर्वे परभावोने मूळमांथी उखेडतो – उखेडतो ते मुमुक्षुओना
मार्गे मुक्तिपुरीमां जाय छे.