Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 41

background image
: ४ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९९
ज्ञानीनुं ज्ञान परिणमनरूप छे, गोखवारूप नथी.
(वीतरागविज्ञान प्रवचन भाग ४ मांथी)
भेदज्ञान करीने ज्यां सम्यग्ज्ञान थयुं त्यां ज्ञानीने अतीन्द्रिय शांतिनुं वेदन थाय
छे. आवी शांतिना वेदन वगर आत्माने कदी कषायो शांत पडे ज नहीं. भले त्यागी
थाय, व्रत पाळे के शास्त्रोनुं रटण करे, – ए तो बधुं पोपटियुं ज्ञान (वाचा ज्ञान) छे.
पोपटियुं ज्ञान एटले शुं? तेनुं द्रष्टांत –
एक हतो पोपट.
तेना मालिके तेने बोलतां शिखडाव्युं के ‘बिल्ली आवे तो ऊडी जवुं.... बिल्ली
आवे तो ऊडी जवुं.... ’
एकवार खरेखर बिलाडी आवी, ने पोपटने मोढामां पकड्यो; त्यारे बिलाडीना
मोढामां पड्यो– पड्यो पण ते पोपट गोखे छे के ‘बिल्ली आवे तो ऊडी जवुं.... बिल्ली
आवे तो... ’ – ए गोखवुं शुं कामनुं? ए गोखणपट्टीथी कांई पोतानी रक्षा थती नथी.
तेम अंदर चैतन्यतत्त्व शुं छे तेना भान वगर ‘शास्त्रमां आम कह्युं छे, रागने
दुःखदायक कह्यो छे. आत्माने ज्ञानस्वरूप कह्यो छे’ एम पोपटनी जेम रटया करे, के
अंदर तेवा विकल्पो कर्यां करे, पण खरेखर विकल्पथी पार थईने अंतरना
चैतन्यतत्त्वमां परिणाम जोडे नहि तो शांति क््यांथी थाय? बिलाडीना मोढानी जेम ते
विकल्पमां ज ऊभो रहीने गोखे छे के ‘विकल्पथी जुदा पडवुं.... ज्ञानरूप थवुं.....
विकल्पथी जुदा पडवुं....” –पण खरेखर जुदो तो पडतो नथी ने ज्ञानरूप थतो नथी, तो
एकला शास्त्र गोख्ये कांई सम्यग्ज्ञान थाय नहीं अंदर तेवा भावरूप परिणमन थवुं
जोईए.
जेनी चेतना रागथी जुदी पडी गई छे ने सम्यग्ज्ञानरूप परिणमन थयुं छे तेणे
‘रागथी जुदो छुं.... ’ एम गोखवुं न पडे; ज्ञानने टकाववा विकल्पन न करवा पडे. जेम
कोई पोपटने ‘बिलाडी आवे तो ऊडी जवुं’ एम बोलतां भले न आवडे, – पण