श्रावणसुद पूनम आवे छे ने वात्सल्यना मधुर संदेश लावे छे. लौकिकमां बहेन
साधर्मीनो धर्मसंबंध तो भाई – बहेनना संबंध करतांय वधु ऊंचो छे, एना परस्पर
वात्सल्यनी शी वात!
पुत्र उपरनुं संकट माता देखी शकती नथी तेम धर्मात्मा उपर के धर्मी उपरनुं कोई संकट
धर्मात्मा देखी शकता नथी, तेमना प्रत्ये सहेजे वात्सल्य आवी जाय छे. साधर्मीने
देखीने प्रेम – प्रसन्नता अने आ मारा स्वजन छे एवो आत्मीयभाव धर्मीने आवे छे;
तेथी एकबीजानी धार्मिकभावनानी अनुमोदना अने पुष्टि करे छे.
जैनमार्ग, तेने उपासनारा साधर्मीओ धन्य छे.... आदरणीय छे, तेमने माटे हुं जेटलुं
करुं एटलुं ओछुं छे.
धर्मापिताना सौ वीर–संतानो एक बनीए, वीरनाथना मार्गमां आपणा जीवनने
पवित्र करीने वात्सल्यना शणगारथी शोभावीए, ने जैनधर्मध्वजने आनंदथी जगतमां
फरकावीए...ए ज भावना..