Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 49

background image
: श्रावण : २४९९ आत्मधर्म : ३१:
सुख
ज्ञानचेतना वडे ज सुख अनुभवाय छे.
ज्ञानचेतना पोते सुखरसथी तरबोळ छे.
देवलोकना देव करतांय असंख्यगणुं मोघुं एवुं आ मनुष्यपणुं पामीने, विषय
कषायरूप पापना अशुभमां भव गुमावे के कुदेव – कुगुरुना सेवनमां जीवन गुमावे
तेनी तो वात शी? पण साचा वीतरागी देव–गुरुने ज माने, बीजाने माने नहि, विषय
कषायना पापभाव छोडीने शील–व्रतना शुभभावमां लयलीन रहे, अने तेमां ज संतोष
माने के आनाथी हवे मोक्ष थई जशे, पण ते व्रतादिना शुभरागथी पार ज्ञानचेतनानो
अनुभव न करे तो तेवो जीव पण जराय सुख नथी पामतो. ते स्वर्गमां जाय छे, – पण
तेथी शुं? सुख तो रागवगरनी चैतन्यपरिणतिमां छे, कांई स्वर्गना वैभवमां सुख
नथी. ज्ञानचेतनावडे ज सुख अनुभवाय छे, ज्ञानचेतना पोते सुखरसथी भरेली छे.
आ कोनी वात छे? – तारी पोतानी! बापु! तुं पोते ज्ञानचेतनास्वरूप छो...
तारी ज्ञानचेतनाने भूलीने अनंतवार तुं शुभभाव करी चूक्यो छो. शुभ साथे अज्ञान
पड्युं छे एटले रागमां सर्वस्व मानीने रागवगरना आखा ज्ञानस्वभावनो तुं अनादर
करी रह्यो छे. सम्यग्ज्ञान वगर रागमां तो सुख क््यांथी होय? शुभरागमां एवी ताकात
नथी के अज्ञानरूपी अंधकारने के दुःखने दूर करे. ज्ञानचीज रागथी जुदी छे; ते
ज्ञानचेतनाना प्रकाश वडे ज अज्ञान–अंधारा टळे छे ने सुख प्रगटे छे. निजानंदी
ज्ञानस्वरूप आत्मा तरफ वळीने सम्यग्ज्ञान–चेतना प्रगट कर्यां वगर सुखनो अंश पण
प्राप्त न थाय.
अतीन्द्रिय आनंदनो पिंड आत्मा पोते छे; रागमां कांई सुख भर्युं नथी.
रागमांथी के बहारथी सुख लेवा मांगे ते तो, सुखनी सत्ता आत्मामां छे तेनो
ईन्कार करे छे. अरे, ज्यां सुख छे – जे पोते सुख छे तेनो स्वीकार कर्यां वगर सुख
क््यांथी थाय?
प्रश्न: – शुभरागमां सुख भले न होय, पण दुःख तो नथी?