वेदे छे. भेदज्ञान ते सिद्धपदनुं कारण, ने भेदज्ञाननो अभाव एटले के अज्ञान, ते
संसारदुःखनुं कारण छे. ज्यां चैतन्यना ज्ञाननी शांतिनुं वेदन नथी त्यां कषाय छे, –
भले अशुभ हो के शुभ हो – पण जे कषाय छे ते तो दुःख ज छे. शुभकषाय ते कांई
शांति तो न ज कहेवाय. आत्माना ज्ञान वडे क्षणमात्रमां करोडो भवना कर्मो छूटी जाय
छे, ने सम्यग्ज्ञान वगर करोडो वर्षना तप वडे पण सुखनो छांटोय मळतो नथी. जुओ
तो खरा, ज्ञाननो अपार महिमा! अज्ञानी जीवने ज्ञानना महिमानी खबर नथी, एने
राग देखाय छे, – पण रागथी पार थईने अंदर चैतन्यमां ऊंडु ऊतरी गयेलुंज्ञान तेने
देखातुं नथी. माटे कहे छे के हे भाई! मोक्षनुं कारण तो सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान सहितनुं
चारित्र छे. सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान वगरनुं आचरण तो थोथां छे, तेमां लेश पण सुख नथी.
आ रीते सम्यग्ज्ञानो महिमा जाणीने, तेने परम अमृत समान जाणीने तेनुं सेवन करो.
एम सर्वे संतोनो उपदेश छे.
तरफना वेगथी ते आकुळ – व्याकुळ दुःखी रहे छे. जो ईन्द्रियोथी भिन्नता
जाणी, ज्ञानने अंतर्मुख करीने स्व–विषयने ग्रहण करे तो आनंदनो अनुभव
थाय ने बाह्यविषयोना ग्रहणनी आकुळता मटी जाय.