: श्रावण : २४९९ आत्मधर्म : ३३ :
धर्मात्मानी आश्चर्यकारी अंतरंग दशा
एक ज पर्यायमां वर्ततुं रागनुं अकर्तापणुं तेमज कर्तापणुं
[समयसार गा. ३२० ना प्रवचनमांथी अषाड वद ७]
धर्मात्माने चोथुं गुणस्थान थयुं त्यारथी ज आत्माना
आनंदरसनी वीतरागधारा तो निरंतर वर्ते ज छे, ते
आनंदधारामां तो रागादिनुं जराय कर्तृत्व नथी; अने तेने ज
दशमा गुणस्थान सुधी जे राग छे ते रागनुं वेदन दुःखरूप छे;
बंने धाराना अत्यंत भिन्न स्वादने धर्मी जाणे छे....
ज्ञायकस्वरूप आत्माना अनुभव सहित जेने सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान थया छे, ने
साधकदशामां हजी थोडा रागादि बाधक भावो पण थाय छे, – एवा धर्मी जीवने
पोतानी श्रद्धा– ज्ञान पर्यायमां तो रागनुं कर्तापणुं के भोकतापणुं नथी; पण हजी
चारित्रनी पर्यायमां जेटली अशुद्धता अने रागादि छे तेनुं कर्ता–भोकतापणुं पोतानी ते
पर्यायमां छे – एम धर्मी जाणे छे.
शुद्ध स्वभावने ध्येय करीने श्रद्धा–ज्ञानादिमां जे शुद्ध परिणमन थयुं छे ते तो
राग वगरनुं ज छे, तेमां तो रागनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी; पण दशमा गुणसन सुधी
चारित्रदशामां जे रागादिभाव थाय छे ते रागनो कर्ता कर्तृनयथी आत्मा पोते छे,
पोतानी पर्यायमां ते काळे तेवो धर्म छे, अने ते धर्मनो अधिष्ठाता आत्मा ज छे, –
एम ज्ञानी पोतानी पर्यायमां रागना कर्तृत्वने तेमज भोकतृत्वने ते काळे जाणे छे. ते ज
वखते रागादिना अकर्ता–अभोक्तारूप परिणमन पण श्रद्धा–ज्ञानादि पर्यायोमां वर्ते छे,
तेने पण धर्मी जाणे छे. – आवो भगवाननो अनेकान्त मार्ग छे.
साधकनी पर्यायमां शांतिनुं वेदन तेमज रागनी आकुळतानुं वेदन – एम बंने
एक साथे छे, साधक प्रमाणज्ञानमां बंने धर्मोने पोताना जाणे छे. तेमां ज्यारे
सम्यक्त्वादि शुद्ध भावनी विवक्षाथी जोवामां आवे त्यारे आत्माने शांतिनुं वेदन छे,
तेमां अशांति छे ज नहीं. अने ज्यारे पर्यायमां रागादि छे तेनी विवक्षाथी जोवामां