शुद्धताने मुख्य करीने तेमां एकला आनंदनुं ज वेदन कह्युं, ने रागादि भावो ते शुद्धताथी
जुदा रही गया, एटले तेनो कर्ता– भोक्ता ज्ञानी नथी – एम कह्युं. वस्तुनुं स्वरूप बधा
पडखेथी (बधा धर्मोथी) जेम छे तेम सत्य जाणवुं जोईए.
अने छतां पोतानी पर्यायमां जे रागादिनुं कर्ता–भोक्तापणुं वर्ते छे ते पण ज्ञानीनुं
ज्ञान बराबर जाणे छे. – त्यां जाणवानी क्रियामां धर्मीने एकत्वबुद्धि (तन्मयपणुं)
छे, रागादिनी क्रियाने ज्ञानक्रियाथी जुदी जाणे छे, एटले ज्ञानादि भाव तो राग
वगरना ज छे.
– के हा; तेमने पोतानी पर्यायमां जेटला रागादि छे तेटलुं दुःखनुं वेदन पण छे;
वेदन पण छे. अनंत नयोमांथी भोक्तानये ते ज्ञानी ते दुःखनुं भोक्तापणुं पोतामांजाणे
छे; पर्यायमां एवा भोक्तापणानो धर्म छे, ने ते धर्मोनो अधिष्ठाता आत्मा छे. अरे,
चौदमां गुणस्थानना छेल्ला समय सुधी जे असिद्धत्व भावरूप विभाव छे (उदयभाव)
ते पण जीवनुं स्वतत्त्व छे, जीवनी सत्तामां तेनुं अस्तित्व छे.
छे. तेमां जेटलुं रागादिनुं कर्ता– भोक्तापणुं हजी पर्यायमां वर्ते छे तेने पण धर्मी जाणे
छे. एक तरफ स्वभावनी शांतिनुं वेदन छे तेने पण जाणे छे, ने बीजी तरफ (ते ज
पर्यायमां) रागादिनी अशांतिनुं पण वेदन छे, – बंने धर्मोने ज्ञानी पोतानी पर्यायमां
जेम छे तेम जाणे छे. जे शांति छे तेमां अशांति नथी, एटले राग वगरनो जे ज्ञानभाव
छे तेमां तो शांतिनुं ज वेदन छे, ने साधकने जेटला रागादि छे तेटलुं अशांतिनुं वेदन
छे. आ रीते ज्ञानभाव अने रागभाव बंनेनुं कार्य जुदुं– जुदुं छे; छतां साधकनी
पर्यायमां बंने एक साथे वर्ते छे. पोतानी पर्यायमां छे ते अपेक्षाए आत्मा ज तेनो
कर्ता ने भोक्ता छे.