Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
आवे त्यारे ते ज आत्माने रागना दुःखनुं वेदन छे, ते पोते ज रागनो कर्ता भोक्ता छे.
शुद्धताने मुख्य करीने तेमां एकला आनंदनुं ज वेदन कह्युं, ने रागादि भावो ते शुद्धताथी
जुदा रही गया, एटले तेनो कर्ता– भोक्ता ज्ञानी नथी – एम कह्युं. वस्तुनुं स्वरूप बधा
पडखेथी (बधा धर्मोथी) जेम छे तेम सत्य जाणवुं जोईए.
धर्मात्माने ज्ञाननो कोई अंश रागमां प्रवेशतो नथी, ने रागनो कोई अंश
ज्ञानमां प्रवेशतो नथी, एटले ज्ञानभाव पोते तो कदी रागनो कर्ता के भोक्ता नथी.
अने छतां पोतानी पर्यायमां जे रागादिनुं कर्ता–भोक्तापणुं वर्ते छे ते पण ज्ञानीनुं
ज्ञान बराबर जाणे छे. – त्यां जाणवानी क्रियामां धर्मीने एकत्वबुद्धि (तन्मयपणुं)
छे, रागादिनी क्रियाने ज्ञानक्रियाथी जुदी जाणे छे, एटले ज्ञानादि भाव तो राग
वगरना ज छे.
ज्ञानीने रागनुं – दुःखनुं वेदन होय?
– के हा; तेमने पोतानी पर्यायमां जेटला रागादि छे तेटलुं दुःखनुं वेदन पण छे;
शुद्धता छे तेटली शांतिनुं वेदन तो छे ज, ने तेनी साथे जेटला रागादि छे तेटलुं दुःखनुं
वेदन पण छे. अनंत नयोमांथी भोक्तानये ते ज्ञानी ते दुःखनुं भोक्तापणुं पोतामांजाणे
छे; पर्यायमां एवा भोक्तापणानो धर्म छे, ने ते धर्मोनो अधिष्ठाता आत्मा छे. अरे,
चौदमां गुणस्थानना छेल्ला समय सुधी जे असिद्धत्व भावरूप विभाव छे (उदयभाव)
ते पण जीवनुं स्वतत्त्व छे, जीवनी सत्तामां तेनुं अस्तित्व छे.
श्रुतज्ञान–प्रमाण अनंतनयोमां व्यापेलुं छे, अने ते अनंतधर्मवाळा एक
आत्माने जाणे छे. पोताना द्रव्यमां–गुणमां–पर्यायमां –जे जे धर्मो छे तेने ज्ञानी जाणे
छे. तेमां जेटलुं रागादिनुं कर्ता– भोक्तापणुं हजी पर्यायमां वर्ते छे तेने पण धर्मी जाणे
छे. एक तरफ स्वभावनी शांतिनुं वेदन छे तेने पण जाणे छे, ने बीजी तरफ (ते ज
पर्यायमां) रागादिनी अशांतिनुं पण वेदन छे, – बंने धर्मोने ज्ञानी पोतानी पर्यायमां
जेम छे तेम जाणे छे. जे शांति छे तेमां अशांति नथी, एटले राग वगरनो जे ज्ञानभाव
छे तेमां तो शांतिनुं ज वेदन छे, ने साधकने जेटला रागादि छे तेटलुं अशांतिनुं वेदन
छे. आ रीते ज्ञानभाव अने रागभाव बंनेनुं कार्य जुदुं– जुदुं छे; छतां साधकनी
पर्यायमां बंने एक साथे वर्ते छे. पोतानी पर्यायमां छे ते अपेक्षाए आत्मा ज तेनो
कर्ता ने भोक्ता छे.