साचो उत्सव क््यांथी ऊजवाय?
तेने जाणे ज नहि तो तेने टाळशे क््यांथी? अने अशुद्धता जेटलो ज पोताने मानी ल्ये,
ने ते ज वखते स्वभावनी शुद्धतानुं वेदन जराय न रहे–तो ते मिथ्याद्रष्टि छे. पर्यायमां
जेटला रागादि दोष छे तेनुं वेदन पण पोताने ज छे, ते उपरांत धर्मीने ते ज काळे
रागथी जुदी पोतानी चेतनानुं वेदन पण वर्ते छे.–आवी आश्चर्यकारी साधकदशा छे,
तेने धर्मी ज ओळखे छे. एकांतवादी तेने ओळखी शकता नथी.
परिणमन पोतानुं छे ने पर्यायमां तेनुं वेदन पण छे – एम ज्ञानी पर्यायनयथी जाणे
छे. रागादि थता होवा छतां तेने जाणे ज नहि – तो तो ज्ञान खोटु पडे. ते पर्यायमां
तेक्षण पूरतो तेटलो रागादिना कर्तापणारूप भाव छे, कर्तृनयथी आत्मा पोते ते
कर्तृधर्मवाळो छे.–पण ते ज वखते बीजा अनंत धर्मोमां रागादिने न करे एवो
अकर्तृस्वभाव पण पोतामां छे – एनेय धर्मी जाणे छे, एटले एकली पर्यायबुद्धि तेने
थती नथी, रागादिमां ज्ञाननी एकत्वबुद्धि थई जती नथी. राग अने ज्ञानथी
भिन्नताना भान सहित पोतानी पर्यायमां ज्ञानधाराने अने रागधाराने जेम छे तेम
जाणे छे. तेनो कर्ता पण छे, तेनो भोक्ता पण छे, अने ते ज वखते रागादिना अकर्ता–
अभोक्तापणानो भाव पण धर्मीनी पर्यायमां वर्ते छे – अहो, अनेकान्तमय
वस्तुस्वरूप! आवा वस्तुस्वरूपने जाणीने हे जीवो! तमे आजे ज आत्मामांथी आनंद
काढीने ते आनंदनो अनुभव करो.
अनेक अकर्तृनय, तथा भोकतृनय अने अभोकतृनय पण छे; तो प्रवचनमांथी केटलोक
सार अहीं आपीए छीए.)