पण आत्मानी पर्यायमां वर्ते छे. तेने धर्मी जाणे छे.–जाणीने परभावोथी भिन्न
पोताना शुद्धचैतन्यने प्राप्त करे छे.
छुं, मारा शुद्ध चैतन्य द्रव्यमां रागनो अंश पण नथी एटले रागनुं कर्तापणुं मारा
स्वरूपमां नथी – आवी अंर्तद्रष्टिपूर्वक, पर्यायमां जे अल्प रागादि थाय छे तेने पण
साधक जीव पोतानुं परिणमन जाणे छे; – तेने प्रमाण ज्ञानपूर्वक आ कर्तृनय होय छे.
रागथी भिन्न चिदानंद स्वभावनी द्रष्टि छोडीने एकला रागना कर्तापणामां रोकाय तेने
आ कर्तृनय होतो नथी.
धर्म छे. (ए खास लक्षमां राखवुं के साधकने पर्यायमां एकलुं रागनुं कर्तृत्व ज नथी
परंतु ते ज वखते पर्यायमां जेटली शुद्धता छे तेटलुं रागनुं अकर्तृत्व पण वर्ते छे.)
जीवनी पर्यायमां जे राग थाय छे तेनो कर्ता कोण? आत्मा पोते पर्यायमां विकारपणे
परिणमे छे तेथी आत्मानो ज ते धर्म छे, तेनो कर्ता आत्मा छे, पण जडकर्म तेनुं
कर्ता नथी आ साधकना नयनी वात छे. साधकना श्रुतज्ञानमां आवा नयो होय छे.
सिद्धभगवानने राग पण नथी ने नय पण नथी. जेने हजी पर्यायमां राग थाय छे
एवो साधकजीव कर्तृनयथी एम जाणे छे के आ राग थाय छे तेनो कर्ता हुं छुं; बीजुं
कोई तेनुं कर्ता के करावनार नथी. तेमज मारा त्रिकाळी चैतन्यस्वभावमां आ रागनुं
कर्तापणुं नथी, ते पर्यायमां जेटली शुद्धता थई छे तेमां पण रागनुं कर्तापणुं नथी.–
आम जाणवुं ते अनेकान्त छे. एकलुं कर्तृत्व ज जाणे, ने ते ज वखते अकर्तृत्वने न
जाणे, अथवा सर्वथा अकर्ता जाणे ने पर्यायमां जेटलुं रागनुं कर्तृत्व वर्ते छे तेने न
जाणे–तो प्रमाणज्ञान एटले वस्तुनुं साचुं ज्ञान थाय नहि, ने वस्तुना साचा ज्ञान
वगर शुद्धआत्मानी प्राप्ति थाय नहीं.