Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
समयसारना परिशिष्टमां चैतन्यपरिणमनमां उल्लसती जे ४७ शक्तिओनुं
वर्णन कर्युं छे ते तो त्रिकाळी स्वभावरूप धर्मो छे अने तेनुं निर्मळ परिणमन थयुं तेनी
वात छे; तेमां विकार न आवे. त्यां ४२ मी शक्तिमां जे कर्तृत्वशक्तिनुं वर्णन कर्युं छे ते
कर्तृत्वशक्ति तो बधा जीवोमां छे, सिद्धमांय ते कर्तृत्व छे. ते कर्तृत्वमां रागादि न आवे.
अने प्रवचनसारमां कर्तृनयथी जे कर्तापणानुं वर्णन कर्युं छे तेमां तो रागना कर्तापणानी
वात छे, ते त्रिकाळी स्वभावरूप धर्म नथी पण एक क्षणपूरती पर्यायनो धर्म छे; ते
पर्याय आत्मानी छे, तेथी तेने आत्मानो धर्म कहेवाय छे.
प्रश्न: – राग करवो ते तो दोष छे, छतां धर्मी पोताने रागनो कर्ता केम जाणे?
उत्तर: – ते आत्माना त्रिकाळी स्वभावरूप धर्म नथी, तेम ज ते मोक्षमार्गरूप
धर्म पण नथी, परंतु राग आत्मानी पर्यायमां थाय छे एटले रागने ज्यां सुधी
पोतानी पर्यायमां धारी राखे छे त्या सुधी ते आत्मानो पोतानो धर्म छे ने तेनो कर्ता
आत्मा छे. पोतानी पर्यायमां थाय छे माटे तेने पोतानो धर्म कह्यो छे, ते त्रिकाळ नथी
पण क्षणिक पर्यायपूरतो छे. कर्तृनयथी आ रागना कर्तापणाने जाणनार जीव ते ज
वखते तेना अकर्तापणे पण परिणे छे. केमके रागना कर्तापणा वखते ज बीजा अनंत
धर्मोमां जे शुद्ध चैतन्यपरिणमन छे तेमां रागनुं कर्तृत्व नथी. – आम (कतृत्व तेम ज
अकर्तुत्व) बंने धर्मो साधकने एक साथे छे.
रागनुं कर्तापणुं जाणनार ज्ञानी, ते रागमां ज न अटकतां शुद्ध
चैतन्यस्वभाव तरफ वळी गयो छे. प्रमाणना विषयरूप सामान्य विशेषात्मक द्रव्य
(अनंत धर्मवाळुं) छे तेना बधा पडखांने जाणतां ज्ञाननुं वलण शुद्ध स्वभाव तरफ
ज वळे छे एटले पर्यायमांथी रागनुं कर्तृत्व टळे छे ने शुद्धतानुं कर्तृत्व प्रगटे छे.
रागनो कर्ता ते व्यवहार छे ने रागनो अकर्ता (साक्षी) ते निश्चय छे. धर्मी बंनेने
जेम छे तेम जाणे छे.
प्रश्न: – रागादिनो कर्ता थवानो आत्मानो धर्म होय तो ते कदी टळशे नहि,
आत्मा सदाय रागादिने कर्यां ज करशे?
उत्तर: – ना; एम नथी. आ कर्तृधर्म अनादि अनंत नथी, पण साधकदशामां