रागना कर्तृत्व वगरनुं जे त्रिकाळ आत्मद्रव्य छे तेने पण जाणे ने रागादिनो साक्षी
थई जाय. रागादिपणे आत्मा थाय छे – एम आत्माना धर्मवडे जेणे आत्माने
जाण्यो तेनी द्रष्टि एकला राग उपर न रहेतां, अनंत गुणना पिंड शुद्ध चैतन्य द्रव्य
उपरजाय छे ने ते रागनो पण साक्षी थई जाय छे. क्रमेक्रमे रागनुं कर्तृत्व (रागनुं
परिणमन) छूटीने, तेनो सर्वथा अकर्ता थई, वीतरागता ने केवळज्ञान प्रगट करे छे.
सम्यक् नयोनुं आ फळ छे. कोईपण सम्यक् नयथी आत्माने जाणतां शुद्धचैतन्यनी
प्राप्ति थाय ज छे.
ज तेना धर्म जणाय छे. सम्यक्नयोनुं फळ तो मोक्ष कह्युं छे. एटले रागना कर्तृत्वने
जाणवारूप जे कर्तृनय छे तेनुं फळ पण मोक्ष छे; केमके सम्यक्पणे ते धर्मने जाणनार ते
ज वखते अनंत धर्मस्वरूप चैतन्यतत्त्वने पण श्रुतप्रमाणवडे जाणे छे. आ रीते शुद्ध
स्वभावने द्रष्टिमां राखीने पर्यायमां रागना कर्तापणानुं ज्ञान करे तने ज ‘कर्तृनय’ होय
छे, बीजाने कर्तृनय होतो नथी. नय ते सम्यज्ञानरूपी सूर्यनुं किरण छे, अज्ञानीने नय
होता नथी. ज्ञानी जीव प्रमाणथी देखे के नयथी देखे, – पण अंतरमां शुद्ध चैतन्यने ज
प्राप्त करे छे.
जाय छे ने ज्ञानचेतनारूप साक्षीपणुं वधतुं जाय छे.–आवी साधकदशा छे. ‘अत्यारे
रागने करे छे एवो मारा आत्मानो एक धर्म छे’ –एम कर्तृनयथी जोनार ज्ञानी पण,
ते धर्मद्वारा धर्मी एवी शुद्ध चैतन्यवस्तुने अंतरमां देखे छे, एटले कर्तृनयनुं फळ कांई
रागना कर्ता रहेवुं–ते नथी, पण शुद्धच्ैतन्यद्रव्यना अवलंबने राग टळी जाय ते
कर्तृनयनुं फळ छे.
आ बन्ने कथननो मेळ समजवो जोईए. अनुभूतिना विषयरूप शुद्धात्मा बतावता
तेने रागनुं सर्वथा अकर्तापणुं ज कह्युं. अने प्रमाणना विषयरूप आत्माना