Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ४० : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
अनन्तधर्मो बताववा रागनुं कर्तृत्व पण तेमां कह्युं – तेमां क््यांय विरोध नथी.
कर्तृनयथी आत्माने रागनो कर्ता मान्यो माटे हवे ते आत्मा अनादिअनंत
रागनो कर्ता ज रहेशे – एम नथी; केमके आ धर्मने जोनार पण एकला आ धर्म जेवडो
ज आखो आत्मा नथी मानतो. परंतु ते ज वखते ज्ञान –आनंद वगेरे अनंत धर्मवाळा
शुद्धआत्माने ते श्रुतज्ञानमां स्वीकारे छे, ने शुद्धआत्माने जोनारो रागमां अटकी जतो
नथी, एटले के ‘रागपणे ज हुं रहीश’ एम ते प्रतीत करतो नथी; तेने तो एम
निःशंकता छे के हुं मारा चैतन्यस्वभावपणे परिणमीने अल्पकाळमां ज आ रागनो
अभाव करी नांखीश. अत्यारे रागपणे जेटलुं परिणमन छे तेटलो मारो धर्म छे, ते
रागनुं दुःख पण मने वेदाय छे; – कांई धर्मी थाय एटले तेने रागनुं दुःख न वेदाय –
एम नथी. धर्मी पण पोतामां जेटलो राग छे तेटलुं दुःख समजे छे – पण एटलुं खरूं के
ते दुःख वखते पण सम्यग्द्रर्शनादिथी जे अपूर्व आत्मशांतिनु वेदन प्रगट्युं छे ते वेदन
पण वर्ते ज छे, अने ते वेदनमां रागनो के दुःखनो अभाव छे एककोर अपूव शांति ने
एककोर रागनुं दुःख–बंने भाव धर्मीने पर्यायमां वर्ते छे, ने ते बन्नेने धर्मी पोतामां
जाणे छे.
*
‘आत्माने रागनुं कर्तापणुं स्वीकारतां तो ते कर्तापणुं अनादिअनंत रही जशे!
माटे कर्मने ज रागनुं कर्ता कहो ’ – एम कोईने थाय तो ते खोटुं छे, कर्तृनयना
अभिप्रायने ते समज्यो ज नथी. हे भाई! कर्तृधर्म तो ते क्षणिक पर्यायपूरतो छे,
त्रिकाळ नथी; ते ज वखते त्रिकाळी चेतन द्रव्य तो रागना कर्तृत्व वगरनुं ज छे. कर्तृधर्म
कोनो छे? आत्मद्रव्यनो छे; ते आत्मद्रव्य केवुं छे? अनंत धर्मना पिंडरूप शुद्ध
चैतन्यमात्र छे. आवा शुद्ध आत्मानी द्रष्टिपूर्वक, कर्तृनयथी रागनुं कर्तापणुं जेणे जाण्युं
तेने राग लंबातो नथी, केम के ते ज काळे अकर्तुनये आत्मानो स्वभाव रागादिनो
अकर्ता ज छे – एम पण ते जाणे छे.
*
वळी कोई एम कहे छे के–‘कर्म तो आत्माने विकार न करावे पण कर्तृनये आत्मा
विकार करे–एम अमे मानी लीधुं!’ –तो तेने पूछीए छीए के हे भाई! तारी नजर
क्यां छे? कोनी सामे मीट मांडीने तुं आत्माना कर्तृधर्मने कबुले छे? तारी नजरनी मीट
विकार उपर छे के चैतन्यमय आत्मद्रव्य उपर? विकार उपर मीट मांडीने आत्माना
धर्मनुं यथार्थ ज्ञान थतुं नथी, आत्मद्रव्यनी सामे मीट मांडीने ज तेना धर्मनुं यथार्थ
ज्ञान थाय छे. माटे