: ४२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
धर्मीनुं वेदन
* धर्मीने दुःख होय? ... हा; धर्मीनेय जेटलो राग छे तेटलुं दुःख छे.
* ते दुःखनुं वेदन धर्मीने होय? .... . हा; जेटलो राग छे तेटलुं दुःखनुं पण
वेदन छे. रागनुं वेदन तो दुःखरूप – आकुळतारूप ज होय ने! रागनुं
वेदन कांई शांतिरूप न होय.
* ते रागना दुःख वखते धर्मीने शांतिनुं वेदन छे के नथी? .... छे; ते
वखतेय स्वभावना श्रद्धा–ज्ञानादिरूप जे शुद्ध परिणमन वर्ते छे तेमां तो
अपूर्व आत्म शांतिनुं ज वेदन छे, तेमां कांई दुःख नथी; पण रागमां तो
दुःख ज छे, तेमां कांई शांति नथी.
* तो एककोर सम्यग्द्रर्शनादिनी अपूर्व शांतिनुं वेदन, ने बीजीकोर रागनी
आकुळताना दुःखनुं वेदन, – ए बंने वेदन धर्मीने एकसाथे वर्ते छे? –
हा; साधकनी पर्यायमां शांति अने दुःख बंनेनुं वेदन एकसाथे वर्ते छे.
जो शांतिनुं जराय वेदन न होय ने एकला ज दुःखनुं वेदन होय तो –
तो अज्ञानदशा छे; अने जो पूर्ण शांतिनुं ज वेदन होय ने दुःखनुं वेदन
जराय न होय तो त्यां पर्णदशा होय; साधकनी दशामां तो घणी शांतिनुं
वेदन होवा छतां रागादिना जराक दुःखनुं वेदन पण छे. – आवी
मिश्रधारा साधकने होय छे.
* जेटलो राग छे ते रागने दोषरूप – दुःखरूप जो न जाणे, ने ते रागमां
पण जो शांति माने तो तेने पोताना दोष जोतां आवडतुं नथी. एणे तो
दोषने गुणमां भेळवी दीधो. गुण–दोषनुं साचुं पृथक्करण ज्ञानी ज करी
शके छे. रागादि दोषना कोई अंशने ते गुणमां भेळवता नथी.
* शांतिनुं जराय वेदन न होय ते अज्ञानी, अशांतिनुं जराय वेदन न होय
ते वीतराग. घणी शांति साथे जराक अशांतिनुं वेदन – ते साधकदशा.
– आम पोतानी पर्यायमां शांति – अशांतिनुं वेदन जे प्रकारे वर्ते छे ते
प्रकारे धर्मी जाणे छे.