Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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तीर्थयात्रानो हेतु शुं छे?
अहो, सम्मेदशिखर वगेरे महान तीर्थक्षेत्रो – ज्यां अनेक साधकसंतो अने
तीर्थंकरो विचर्या, ज्यांथी अनेक जीवो मोक्ष पाम्या, तेमना वीतरागी जीवननुं स्मरण
तीर्थयात्रामां जागे छे, ने पोताने तेवा मार्गे जवानो उल्लास जागे छे; संसारनां कार्योथी
निवृत्तिपूर्वक आत्मतत्त्वनी एकत्वभावना जागे छे. आ रीते तीर्थमां विचरतां
वीतरागी महापुरुषोना जीवननुं स्मरण थतां पोताने चैतन्यनी आराधनानो उत्साह
जागे छे–ते ज तीर्थयात्रानो हेतु छे. संसारनी अनेकविध शुभाशुभप्रवृत्ति वच्चेथी
निवृत्त थईने तीर्थधामोमां शुद्ध चैतन्यतत्त्वनी भावना करवी, तेनी अनुभूतिनो
अभ्यास करवो, असार संसारथी विरक्त थईने मोक्षमार्गे विचरेला वीतरागी संतोनुं
जीवन याद करीने पोते ते मार्गमां उत्साह जगाडवो,–ते तीर्थयात्रानी सफळता छे. ते
माटे ज्ञानीओए तीर्थनो महिमा कर्यो छे. तीर्थयात्राना शुभरागथी धर्म नथी–एम
कहीने कांई ज्ञानीओ तीर्थयात्रानो निषेध नथी करता, पण एम कहे छे के तीर्थमां जईने
तुं पण पूर्व –संतोनुं स्मरण करीने तेमनी जेम शुद्धात्मतत्त्वनी भावना करजे, तेने
भूलीने एकली बाह्यशुभक्रियामां अटवाई जईश मा–
तीर्थयात्रा संबंधमां गुरुदेवना भावभीना हस्ताक्षर आप वांचो