फोन नं. : ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 182
दश प्रश्न * दश उत्तर
[प्रवचनमांथी सुंदर संकलन]
जगप्रसिद्ध तत्त्व शुं छे?
आ चैतन्यतत्त्व जगप्रसिद्ध छे.
मुमुक्षुना हृदयनी वात शुं छे?
निर्विकल्प शुद्ध चैतन्यनी अनुभूति ते मुमुक्षुना हृदयनी वात छे.
सिद्धिने माटे मुमुक्षु शुं करे छे?
मुमुक्षु सौथी पहेलांं सर्वज्ञस्वभावी शुद्ध निर्विकल्पतत्त्वने जाणे छे.
ते निर्विकल्प तत्त्व क्यां बिराजे छे?
संतोनी ज्ञानपरिणतिमां ते आनंदसहित बिराजमान छे.
आ मोटा भवसमुद्रने तरवा माटे क्यां जवुं?
एनाथी मोटो जे ज्ञानसमुद्र तेमां ऊत्त्रतां भवसमुद्रने तराय छे.
सम्यक्त्व थतां शुं थयुं?
आनंदथी भरेलुं आखुं आत्मतत्त्व हाथमां आव्युं.
सर्वज्ञदेवना उपदेशनुं फळ शुं?
आत्मानुं हित थाय ते; केमकेम सर्वज्ञदेव ‘हितोपदेशी’ छे.
संतनी वाणी केवी छे?
संतनी वाणी तो भवनां अंतनी वाणी छे.
जैनशासन केवुं छे?
मोह वगरना शुद्धभावरूप जैनशासन छे.
शुभरागवाळा ज्ञानी ते धर्मी छे?
हा; पण त्यां तेना सम्यक्त्वादि शुद्धभाव ते धर्म छे, जे शुभराग छे ते
धर्म नथी.
प्रकाशक : श्री दिगंबर जैन, स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट सोनगढ (सौराष्ट्र) प्रत: ३३प०