: ४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
ज्ञानभावमां ज तन्मयपणे परिणमे. ते ज्ञानमां रागादिनुं के कर्मनुं कर्तापणुं नथी. ए
तो पोताना ज्ञानमयभावमां ज क्रमबद्ध परिणमतो थको मोक्ष तरफ ज चाल्यो जाय छे.
ज्ञानमां रागनुं कर्तापणुं केवुं? ने ज्ञानने कर्मनुं बंधन केवुं? आवा ज्ञानपणे परिणमतो
आत्मा कर्मनो अकर्ता ज छे. ते तो ज्ञानस्वभावना स्वीकार वडे आनंद करतो करतो,
अनंतगुणना निर्मळक्रममां परिणमी रह्यो छे.–ते परिणमनमां रागनुं कर्तृत्व
समाय नहीं, रागमां ते परिणाम तन्मय थाय नहीं, एटले कर्मनुं निमित्तकर्तापणुं पण
तेने नथी.
भाई, तारी सत्ता तारा परिणाममां होय, बीजाना परिणाममां तारी सत्ता न
होय. बे द्रव्योनी सत्ता अत्यंत जुदी, तेओ एकबीजानी पर्यायमां जाय नहीं, एटले
एकबीजानी पर्यायने करे नहि. जो एक–बीजानी पर्यायने करे तो बन्ने द्रव्यो एक थई
जाय, जीव ने अजीव बन्ने एक थई जाय एटले कोईनी जुदी सत्ता ज न रहे, ‘सत्तानो
नाश’ थई जाय एटले सत्यानाश थई जाय.
पोतानी सत्ता जुदी न जाणतां, जे अज्ञानी परनी साथे कर्ताकर्मपणुं मानशे ते
पोताना अज्ञानपणे ऊपजतो थको, कर्म–बंधमां निमित्तकर्ता थईने संसारमां रखडशे.
कर्ममां आत्मा निमित्त, ने आत्मामां कर्म निमित्त–एवुं अज्ञानीने छे. ज्ञानी तो
ज्ञानभावमां ज तन्मयपणे ज्ञानरूपे ज परिणमे छे, ते ज्ञानभाव कर्ममां निमित्त नथी, ने
कर्म ते ज्ञानभावमां निमित्त नथी. आ रीते ज्ञानभावरूप ज्ञानीने परनुं अकर्तापणुं ज छे.
ने पोताना अनंतगुणनी निर्मळपर्यायमां तन्मयपणे उपजतो थको तेनो ते कर्ता छे.
अहो, आ कर्ताकर्मना सिद्धांत उपर आखो मोक्षमार्ग छे. कर्ताकर्मनुं आवुं
स्वाधीन पणुं नक्क्ी कर्यां वगर कदी मोक्षमार्ग थाय नहि.–केमके ज्यां सुधी पर साथे
कर्ताकर्मपणुं माने त्यांसुधी पराश्रयबुद्धि मटे ज नहि, ने पराश्रये कदी मोक्षमार्ग थाय
नहि. परथी अत्यंत भिन्नपणुं नक्क्ी करीने, पोताना ज्ञानस्वभावमां स्वाश्रये
परिणमतां मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे; ज्ञाननो क्रमबद्ध उत्पाद ज्ञानरूप छे, ज्ञाननां क्रममां वच्चे
राग के जड न आवे. आ रीते मारी ज्ञानपर्यायमां हुं ज ऊपजुं छुं–बीजुं कोई नहि
एम नककी करनार, पोताना स्वभावपणे ज उपजतो थको रागादि परभावोने करतो
नथी. आ रीते स्वभावथी निर्मळ परिणाममां ऊपजतो आत्मा रागादिनो तथा
कर्मोनो अकर्ता ज छे.–ज्ञाताद्रष्टाभावपणे रह्यो, ए ज धर्म, ए ज मोक्षमार्ग, ए ज
धर्मीनुं कार्य.