: श्रावण : २४९९ आत्मधर्म : ३ :
अहीं आचार्यदेव आगमथी–युक्तिथी–न्यायथी ने द्रष्टान्तथी कर्ता–कर्मनुं परथी
निरपेक्षपणुं बतावीने, आत्माने परनुं अकर्तापणुं सिद्ध करे छे. आवुं अकर्तापणुं
समजीने पोताना चैतन्यभावमां ज तन्मय परिणमतो जीव, कर्मनो अकर्ता थईने
मोक्षने साधे छे.
प्रथम तो आ जगतमां जे कोई जीव के अजीव पदार्थ छे ते बधाय पोतपोतानी
पर्यायमां तादात्म्यपणे वर्ते छे. जीव क्रमनियमित एवा पोताना जीवपरिणाममां
तन्मयपणे वर्ते छे, ते अजीवथी जुदो छे; अने अजीव पण पोताना अजीवपरिणाममां
तन्मयपणे वर्ते छे; ते जीवथी जुदुं छे.–आम बन्नेने भिन्नपणुं छे. आ रीते पोतपोताना
परिणाममां ज तन्मय वर्तता द्रव्यने, बीजा द्रव्यनी साथे कर्ताकर्मपणुं नथी.
जीव पोतानी क्रमनियमित जीवपर्यायोरूपे ऊपजतो थको तेनो कर्ता छे, पण ते
अजीवनी पर्यायनो कर्ता नथी, अजीवनी पर्यायपणे ते ऊपजतो नथी; छतां अजीवनुं
कर्तापणुं माने छे ते अज्ञान छे अने ते अज्ञानथी ज जीवने संसार छे.
मारा परिणाममां हुं, ने परना परिणाममां पर, एम भिन्नपणुं न जाणतां, जे
अज्ञानी एम माने छे के मारा परिणामने बीजो करे ने बीजाना परिणामने हुं करुं, ते
जीव पोताना ज्ञानस्वभावने भूलीने, परने आश्रित (कर्मने आश्रित) अज्ञानपणे
ऊपजतो थको कर्मोथी बंधाय छे, ने संसारमां रखडे छे.
भाई, तारी पर्यायना आश्रये तारुं द्रव्य छे, ने तारा द्रव्यना आश्रये तारी
पर्याय छे, ते रीते कर्ता–कर्मनुं (द्रव्य–पर्यायनुं) पोतामां ज अनन्यपणुं छे, बीजा कोई
साथे तेने संबंध नथी, बीजा कोईनी तेने अपेक्षा नथी.
तारुं द्रव्य बीजानी पर्यायमां वर्ततुं नथी – के तुं तेने कर. अने तारी पर्यायमां
बीजुं द्रव्य वर्ततुं नथी – के ते तारी पर्यायने करे. तारो कर्ता तुं; ने परनो कर्ता पर.
तेमां कोईने बीजानो आश्रय नथी.
रे! कर्म–आश्रित होय कर्ता, कर्म पण कर्ता तणे,
आश्रितपणे ऊपजे नियमथी, सिद्धि नव बीजी दीसे.
कर्ता अने तेनुं कर्म बन्ने अनन्य ज होय छे, ए सिवाय बीजी कोई रीते तेनी
सिद्धि थई शकती नथी एटले के भिन्न पदार्थो वच्चे कोई रीते कर्ता–कर्मपणुं सिद्ध थई
शकतुं नथी. अरे, आवुं परथी निरपेक्षपणुं समजे तो सन्मुख थईने