पोताना द्रव्य साथे अनन्यपणुं छे, एटले तारी दरेक पर्यायमां तारा
द्रव्यने अनन्यपणे देख. एकली पर्यायने न देख, पर्यायमां अनन्य
एवा द्रव्यने देख.
थतां पर्याय शुद्ध थईने परिणमी. द्रव्यस्वभावमां अनन्य थयेली ते
पर्याय हवे रागमां तन्मय केम थाय? द्रव्यस्वभाव तरफ झुकेला
ज्ञानभावने रागथी तो अन्यपणुं थई गयुं. अहो, द्रव्य–पर्यायना
अनन्यपणाना सिद्धांतमां तो रागथी भिन्नपणुं थई जाय छे एटले
रागनुं अकर्तापणुं थई जाय छे. आवुं वीतरागी तात्पर्य समजे, –एटले
के आवा भावरूपे पोते परिणमे, तो ज शास्त्रनुं रहस्य समज्यो
कहेवाय. मारी पर्यायनुं अनन्यपणुं मारा ज्ञानस्वभावी द्रव्य साथे छे,
– बीजा कोई साथे नहि, –आम नक्की करतां तो परिणमननो आखो
प्रवाह ज स्वसन्मुख पलटी गयो, मोक्ष तरफनी पर्यायनो अपूर्व प्रवाह
शरू थयो. आवा जीवने ज ‘द्रव्यनी क्रमबद्धपर्याय’नुं साचुं रहस्य
समजाय छे.