
आवो धर्मी जीव ते सर्वज्ञप्रभुनो पुत्र छे.
तेमनी भक्ति करनार पण एम ज जाणे छे के मारा कारणपरमात्माने अंतर्मुख
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रनी शुद्ध अभेद परिणति वडे हुं आराधुं–ते ज मने मोक्षनुं
कारण छे; आथी विरुद्ध माने तो तेने मोक्षगत पुरुषोनी साची भक्ति होय नहीं.
श्रद्धा–ज्ञान–शांतिनी अभेद परिणतिवाळो जीव निरंतर भगत छे.. भगत छे.
ते जिनेश्वरदेवनो लघुनंदन छे.
सिद्धि पाम्या? के अंतर्मुख शुद्ध रत्नत्रयनी अभेदपरिणति वडे
कारणपरमात्माने अनुभवीने तेओ सिद्ध थया. एटले आवी कारणपरमात्मानी
अभेद आराधना ते निश्चयथी मुक्तिनुं कारण छे, ते परमार्थ भक्ति छे. (१८)
गुणोने जाणीने तेना प्रत्येनो जे प्रमोदभाव ते सिद्धोनी परमभक्ति छे. –आ
व्यवहारभक्ति छे. आवी भक्तिवाळो जीव पण एम ज जाणे छे के हुं जेमनी
भक्ति करुं छुं तेओ अभेद रत्नत्रयवडे ज मुक्ति पाम्या छे. ने मारे माटे पण
ए ज मुक्तिमार्ग छे. – आ रीते तेमना मार्गनुं सेवन ते ज भक्ति छे. (१९)
पड्या छे, तेमने ज्यारे रामचंद्रजीए वनमां छोडी देवानो हुकम कर्यो त्यारे
वनमांथी सीताजी रामने एवो संदेश कहेवडावे छे के लोकनिंदाथी डरीने मने तो
छोडी पण लोको कदिक जैनधर्मनी पण निंदा करे तो ते निंदा सांभळीने धर्मने न
छोडशो. मुनिवरो वगेरे चार संघनी भक्ति सदाय करजो. –आवो शुभविचार
आव्यो ते व्यवहारभक्ति छे; ते ज वखते रागथी पार आत्माना श्रद्धा–ज्ञान–
आनंदनी जेटली आराधना वर्ते छे. तेटली परमार्थभक्ति छे. उदरमां रहेला
लव–कुश बंने पण धर्मात्मा हता, चरमशरीरी हता, तेमनेय ते वखते
शुद्धसम्यक्त्वादिरूप निर्वाणभक्ति वर्तती ज हती. आ रीते श्रावकोने पण
शुद्धरत्नत्रयनी निश्चयभक्ति होय छे, ने तेटली मोक्षनी आराधना होय छे. (२०)