: १८ : आत्मधर्म : भाद्रपद र४९९ :
रामचंद्रजी पण, ज्यारे सीताजीने रावण लई गयो त्यारे वन जंगलमां चारेकोर
सीताजीने ढूंढे छे, छतां ते वखतेय अंदर निजकारणपरमात्माना श्रद्धा–ज्ञान–
शांतिथी जेटली अभेद रत्नत्रयनी आराधना वर्ते छे तेटली निश्चयथी
मोक्षभक्ति छे. अने ते शुद्ध परिणति तो सीताजी प्रत्येना रागादिथी पण जुदी
ज छे, रागनो प्रवेश ते सम्यक्त्वादि शुद्धपरिणतिमां नथी. (२१)
अहो, सम्यग्द्रष्टिने पोतानो चैतन्यप्रभु हाजराहजुर छे. एनी शुद्ध परिणति
एक क्षण पण निजकारण परमात्माथी जुदी पडती नथी. आवी अभेदरूप
शुद्धरत्नत्रय परिणति वडे कारणपरमात्माने आराधीने ज मोक्षगत जीवो सिद्ध
थया छे. –आ रीते तेमना केवळज्ञानादि गुणोवडे तेमने ओळखवा ते
व्यवहारभक्ति छे. –गुणनी ओळखाण वगर भक्ति कोनी?
(२२)
साधक जीव पोते मोक्षनो आराधक थईने मोक्षगत जीवोनी भक्ति करे छे, तेने
निश्चय–व्यवहार बंने भक्ति यथार्थ छे. जेटली राग वगरनी अभेदपरिणति थई ते
निश्चयसिद्धभक्ति छे, ने ते निर्वाणनुं कारण छे. पंचपरमेष्ठी वगेरे प्रत्येनो जेटलो
राग छे ते तो पुण्यबंधननुं कारण छे, ते कांई मोक्षनुं कारण नथी. (२३)
दुनियामां सौथी ऊंचा स्थाने (लोकाग्रे) सिद्धभगवंतो वसे छे, अने लोकमां
सौथी महान गुणवाळा पण तेओ ज छे. –एवा सिद्धभगवंतो कई रीते सिद्ध
थया? –के शुद्धात्मभावनाथी सिद्ध थया. एम ओळखीने हुं ते सिद्धभगवंतोने
निरंतर नमुं छुं–एटले के जेवी शुद्धात्मभावना तेमणे भावी हती तेवी ज
शुद्धात्मभावना हुं निरंतर भावुं छुं. –आवी आत्मभावनाथी आनंदथी पुष्टि
थाय छे. –ए ज निर्वाणभक्ति छे. (२४)
अहो, सिद्ध भगवंतोना महान अतीन्द्रिय परमसुखनी शी वात? एनो जेणे
स्वीकार करीने आदर कर्यो ते जीव शुभरागने मोक्षनुं साधन माने नहि; ते तो
जाणे छे के मारा शुद्धात्मतत्त्वनी भावनाथी ज मने आवा महान सुखनो
अनुभव थाय छे; तेथी शुद्धात्मभावनारूप परिणति ते ज परमार्थ
सिद्धभक्ति छे. (२५)
जेणे अंतर्मुख थईने कारणपरमात्मानो स्वीकार कर्योने तेमां पोतानी परिणतिने
अभेद करी तेणे सिद्धपुरीमां जवा माटे फर्स्ट कलासनी टिकिटनुं रिझर्वेशन करावी
लीधुं... तेणे सिद्धपुरीमां जवानी मंगलयात्रा शरू करी दीधीने अल्पकाळमां सिद्ध
थवानुं चोक्कस थई गयुं. –आनुं नाम सिद्धभक्ति छे. सिद्धभक्ति कहो, निर्वाणभक्ति